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अनु. विषय
पाना नं.
२८ स्थावर अव यस हो र उत्पन्न होते हैं, और त्रसव स्थावर हो र । अथवा सभी भाव अपने उपार्जित र्भानुसार सभी योनियोंमें उत्पन्न होते हैं।
3०१ उ० पन्द्रहवीं गाथाठा अवतरा, गाथा और छाया ।
उ०१ उ१ लगवानने छस प्रठार सभा ठिये भोहयुत प्राणी द्रव्य
और भाव उपधिसे युज्त हो र र्भ प्रभावसे उसेशठा अनुभव उरते हैं । छस लिये भगवान् ने सभी प्रकार पुढे छा परित्याग र घ्यिा।
૩૦૧ उ२ सोलहवीं गाथाहा भवता, गाथा और छाया।
૩૦૨ 33 भगवानने दोनों प्रहारठे उर्मोटो मनर और माहानस्त्रोत,
अतिपातस्त्रोत और दुष्पशिहित भनोवाटायठो धर्भसन्धछा छारामन र संयभठो पाला।
૩૦૨ उ४ सत्रहवीं गाथाहा अवता , गाथा और छाया।
उ०२ उपभगवानने हिंसाठो सर्वथा छोऽर अहिंसाठा उपदेश ध्यिा
उन्होंने स्त्रियोंठो सहल र्भमन्धछा भूल सभा, स प्रहार
उन भगवान्ने संसारठे यथावस्थित स्व३पठो हेजा। 303 उ६ अठारहवीं गाथाछा सवतरा, गाथा और छाया।
303 उ७ वे भगवान् आधा हिघोषयुत आहाराहिलो
ज्ञानावरशीयाहि धोठा सन्ध सभा, इसलिये उन्होंने सठा सेवन नहीं ठ्यिा । तथा भगवान्ने पापठारा सघोष सन्नाहि छो स्वीहार नहीं उरते हुने प्रासुआहारा सेवन ध्यिा ।
303 उ८ उन्नीसवीं गाथाछा सवतरा, गाथा और छाया।
उ०४ 3८ उन भगवानने दूसरोंछे वस्त्रमा उभी भी सेवन नहीं घ्यिा,
दूसरे पात्रमें भी उन्होंने भोपन नहीं ठ्यिा । भगवान् अपभानछी गाना नहीं राहार सनने स्थानमें आहार के निमित्त मते थे।
उ०४ ४० जीसवीं गाथाजा अवतरा, गाथा और छाया । ४१ भगवान् भशनपान मात्राज्ञ थे, वे उभी भी भधुराधिरसोंमें
आसत नहीं हुसे । भगवान् सर्वघा अप्रतिज्ञ रहे। उन्हों ने आँणे उभी भी, नहीं धोयीं, और न उन्हों ने भी शरीर छो माया।
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श्री मायासंग सूत्र : 3
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