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________________ अनु. विषय पाना नं. २८३ २८३ ૨૮૩ २८3 २८४ २८४ २८४ २८ पन्द्रहवीं गाथाठा अवता, गाथा और छाया। ३० वह मुनि उस/गितभराभे शरीरमें पीडा होने पर उस क्षेत्र अन्टरभे अर्थात् मर्याटित भूभिमें उधर-उधर भाग उरे, अथवा शुष्ठोष्ठछे सभान निस्यत रहे। 3१ सोलहवीं गाथाठा अवतरा, गाथा और छाया। ३२ गितभरमें भुनिळे शरीरमें रस पीडा होवे तो उसे प्ले उरना चाहिये उसठा ज्थन । 33 सत्रहवीं गाथाहा भवता , गाथा और छाया। उ४ उस घंगित भराछो स्वीछार हरनेवाला मुनि अपनी छन्द्रियों को विषयोंसे निवृत छरे, वह प्रतिसेजनयोग्य पीठ-इलाहिजा अन्वेषरा रे। उप अठारहवीं गाथाछा सवतरा, गाथा और छाया। उ६ प्रतिलेजन अयोग्य पीठसाहि ग्रहासे ज्ञानावरशीयाहि धोठा अन्ध होता है, अतः मेसे पीठइलाहिन्छा ग्रह नहीं पुरना चाहिये। गित भरसभे स्थित भुनि ग्रह नहीं रना चाहिये।गित भरगमें स्थित भुनि अपनी आत्भाछो छाययोग और भनोयोगसे पृथहरे और सभी परीषहोपसर्गोष्ठो सहन छरे। उ७ उन्नीसवीं गाथाछा भवता , गाथा और छाया । 3८ गित भराठी अपेक्षा श्रेष्ठ पायोधगभन भरगों ने भुनि स्थित होता है उसछे सभी संग सऽ गायें तो भी वह अपने स्थानसे नहीं उठे। 3८ जीसवीं गाथाछा सवतरा, गाथा और छाया ।। ४० यह पायोधगमन भरा मतपरिज्ञा और घंगितभरासे श्रेष्ठ है, अतः भुनि पापोपगभनभर स्वीकार हरे।। ४१ घडीसवीं गाथाहा भवता, गाथा और छाया । ४२ भुनि यतुर्विधाहारछो छोऽर अथित स्थाऽसमें पर्वत समान अभ्रम्प रह र विहित प्रत्युपेक्षाशाहिघ्यिा मुरते हुसे सभी प्रछारसे शरीर भभत्वठा परित्याग छरे । यहि से परिषहोपससर्गठी माधा उपस्थित हो तो वियार उरे डि यह शरीर म मेरा नही है तो उसमें होनेवाली परीषहोपसर्गठी माधासे भेरा ज्या सम्वन्ध ? वह मेरा मुछछ भी नहीं निगाऽ सती। २८४ २८५ ૨૮પ ૨૮૬ ૨૮૬ २८७ २८७ श्री.आया। सूत्र : 3
SR No.006403
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 03 Sthanakvasi Gujarati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1957
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size11 MB
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