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अनु. विषय
पाना नं.
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६ वह मागभज्ञ मुनि, सुननेठी छरछावाले उत्थित, अनुत्थित सभी प्रकार लोगोंडो शान्ति, विरति, उपशभ, निर्वाा, शौय, आर्थव, भाईव और लाघवष्ठी व्याज्या मागभानुसार रछे समावे।
૨૦પ ७ यतुर्थ सूत्रमा अवतरा, यतुर्थ सूत्र और छाया। ८ मुनि भेडेन्द्रियाठि सभी प्राशियों हितही मोर घष्टि रजते
हुमे धर्मोपदेश छरे। ८ प्रश्वभ सूत्रछामवता , प्रश्वभ सूत्र और छाया।
૨૦૬ १० धर्मोपदेश उरते हुमे मुनि, न अपने आत्माठी विराधना रें,
न दूसरे भनुष्योंडी विराधना उरे और न अन्य प्राश, भूत, व और सत्त्वोंछी विराधना छरे।
२०६ ११ छठे सूत्रछा अवतरा, छठा सूत्र और छाया।
૨૦૭ १२ छावोंडे सनाशात मुनि सभी प्राशियों शरा होते हैं। २०७ १३ सातवें सूचना भवता, सातवां सूत्र और छाया। १४ भविनाश लिये उत्थित मुनि, श्रुतयारित्र धर्भ में स्थिर
हो र, सतवीर्यठो नहीं छिपाते हुसे, सभी प्रकारही परिस्थिति में निष्प्रऽम्प, स्थिरवासरहित अर्थात्
उधविहारी और संयभडी मोर लक्ष्य रजते हुने विहार छरे। २०८ १५ अष्टभ सूत्रठा अवतरा, अष्टभ सूत्र और छाया। १६ सम्यग्दृष्टि व शिनोऽतधर्भठो भनर परिनिवृत हो
लता है। १७ नवम सूत्रछा अवतरारा, नवभ सूत्र और छाया । १८ मासतियुत प्राणी, माह्याल्यन्तर परिग्रहोंसे निमद्ध
होते हैं, उनमें निभन रहते हैं, जाभलोगों अभिनिविष्ट चित्तवाले होते हैं। मुनिछो याहिये डिवे आसतिरहित हो हर संयम पालन उरें, संयभसे उभी भी भयभीत न होवें।
૨૦૯ १८ शभ सूत्रछा अवतरा, Eशभ सूत्र और छाया। २० वह आरम्म जिविससे हिंसठन भयभीत नहीं होते हैं,
उसलो सभ्य प्रहारसे कानपुर और यार उषायोंठा वभन रठे भुनियन संयभभार्ग में वियरते हैं । मेसे मुनि नडे सली उर्भ अन्धनतूट पाते हैं।
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श्री मायासंग सूत्र : 3
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