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अनु. विषय
पाना नं.
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५ तृतीय सूचछा सवतरा, तृतीय सूत्र और छाया । ६ अन्धोंठि विनाश निमित्त प्रयत्नशील उस सयेल
भूनिछो उस भयेलावस्था भने प्रहार परीषह प्राप्त होते हैं, वे परीषह उस भुनिळे लिये तपःस्व३प ही हैं। ७ यतुर्थ सूत्रछा अवतरा, यतुर्थ सूत्र और छाया। ८ भगवान्छी आज्ञानुसार, अपनी २ साभर्य अनुल उत्कृष्ट या अपष्ट साध्वाधार पालनमें प्रवृत सभी मुनि सभ्यत्वी हैं। सभी तीर्थरों शासनछालमें अयेस मुनि विविध परीषहोंठो सहते हैं। ८ प्रश्वभ सूत्रमा अवतरा, प्रश्वभ सूत्र और छाया। १० सम्यग्ज्ञानछो प्राप्त हो युद्धे हैं उनठी जाहें अथवा
माधायें कृश (क्षी) हो पाती हैंर्भक्षपाशार्थ प्रवृत छन सभ्यग्ज्ञानियों भांसशोशित सुजाते हैं। ये अपनी सभभावना और क्षमा आदि गुणोंसे संसारपरम्पराठो छिन्न उरछे रहते हैं । छस प्रहारठे साधु, तीर्थरों द्वारा ती
भुत और विरत हो गये हैं। ११ षष्ठ सूत्रमा भवतरा, षष्ठ सूत्र और छाया। १२ असंयमसे निवृत, उत्तरोत्तर सढते हुमे शुभाघ्यवसायमें
प्रवृत और महत हालसे संयभमें स्थित मेसे भुनिछो ज्या
संयभमें सरति हो सहती है ? । १३ सप्तभ सूचका भवता , सप्तभ सूत्र और छाया। १४ पूर्वोऽत प्रचार साधु, उत्तरोत्तर अधिष्ठाधि प्रशस्त
परियाभधारा अथवा गुरास्थानपर आउट होते हैं, अतः उनछो भरति हो ही उसे ? । *से द्वीप, असन्टीनजाढछे उपद्रवसे रहित होता है, उसी प्रकार यह मुनि भी, उपसर्ग माहिसे बाधित नहीं होता है, अथवा-से असन्टीन द्वीप यात्रिष्ठों के लिये आश्वसनीय होता है, उसी प्रहार संसारसागरछो तिरनेठी छरछावाले भनुष्य, छस
प्रछार साधुओं पर विस्वास पुरते हैं। १५ आठवें सूत्र और छाया। १६ असन्टीन द्वीपडे सभान लगवन्द्राषित धर्भ ली है। १७ नवम सूत्रहा अवता , नवभ सूत्र और छाया।
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શ્રી આચારાંગ સૂત્ર ૩
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