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अनु. विषय
पाना नं.
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११ षष्ठ सूत्र और छाया । १२ प्रवश्याठो डिसी दुष्परिस्थितिमें नहीं त्यागता, असा मुनि
ही निर्ग्रन्थ है। १३ सप्तभ सूत्र और छाया। १४ पिनागभळे अनुसार ही निधर्भठा पासन उरना याहिये
यही तीर्थरोंडा उतभ उपदेश भनुष्योंढे लिये है। १५ आठवां सूत्र ओर छाया। १६ दुर्भधूननठे उपाय घस संयभमें संलग्न हो र, अष्टविध
छो जपाते हुसे हुसे वियरे । सभे होठो भान हर भनुष्य, उन धर्मो छो, श्रभागधर्भठा आराधन उरले
अपाता है। १७ नवम सूचछा सवतरास, नवम सूत्र और छाया । १८ उस पिनशासनमें रह र पिन्होंने अन्धछो शिथिल र
घ्यिा है मेसे तिनेछ मुनि भेडाठिविहार प्रतिभाधारी होते हैं, उन्हें अनेछ प्रहार परीषह प्राप्त होते हैं, उन परीषहोंछो वे धीर मुनि सभतापूर्व सहे।
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॥छति द्वितीय टेश ॥
॥अथ तृतीय
श ॥
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१ द्वितीय शछे साथ तृतीय शठा सम्मन्धथन । प्रथम
सूचठा अवतररारा, प्रथभ सूत्र और छाया। २ भभतारहित, ज्ञानाथाराहिले प्रतिपास मुनि, धर्मोपाडे
अतिरित छर्भमन्धठे छारा वस्त्राहिठों को छोऽ र वियरता है। 3 द्वितीय सूत्रछा अवतरा, द्वितीय सूत्र और छाया। ४ ले साधु, सयेल (मत्पवस्त्रधारी) और साधुभाडामें व्यवस्थित होते हैं उन्हें वस्त्रसम्मन्धी यिन्ता उभी भी नहीं होती।
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श्री मायासंग सूत्र : 3
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