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अनु. विषय
पाना नं.
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५ तृतीय सूत्र छा अवता , तृतीय सूत्र और छाया। ६ शैवाल आहिसे युत पुराने हमें रहनेवाला छप, सा
उसीमें निविष्ट थित होनेसे उससे जाहर नहीं हो सन्ता, उसी प्रहार हेयोपाध्य वुद्धिरहित मनुष्य, इसी भी छस संसार३धी भहासे जाहर नहीं निठल सता । ७ यतुर्थ सूत्रछा भवता , यतुर्थ सूत्र और छाया । ८ से वृक्ष शाजाछेहनाEि:ों सहते हुसे अपने ही स्थान
पर रहते हैं, वहांसे हट नहीं सहते, उसी प्रकार तिने भनुष्य, स्त्री, पुत्राहिसे अपमानित, अने आधि व्याधियोंसे ग्रस्त, और रामपु३षाहिछोंसे हतसर्वस्व होते हुसे भी गृहत्याग नहीं हर सद्यते । वे दुःजी हो र सा विलाप उरते हैं और निधान उरते रहते हैं, उस हारारा उन्हें
भोक्ष नहीं मिलता। ८ प्रश्वभ सूत्रमा अवतरा और प्रश्वभ सूत्र। १० हेयोपाध्य विवेरहित भनुष्य न्भ-भराग यरमें पडे
रहते हैं। ११ षष्ठ सूत्रछा अवतरा, षष्ठ सूत्र और छाया । १२ हेयोपाध्य विवेटरहित सनात्भज्ञ पुष स्वत उभॊठे इस
स्व३प शुष्ठाहि रोगोंसे और विविध परीषहों से आठान्त
होते रहते हैं। १३ सप्तभ सूत्रछा अवतरा, सप्तम सूत्र और छाया। १४ को प्राशी तभों अर्थात् नरठाधि अथवा भिथ्यात्वाहिमें
घडे हुये हैं वे अन्धे हैं । मेसे वहुष्ठाहिसे आटान्त हो
उरम भागी होते हैं। १५ मष्टभ सूचकामवतरराडा, अष्टभ सूत्र और छाया। १६ वासह रसग माहिने व ये सभी दूसरे छावोंछो छष्ट
देते हैं। १७ नवभ सूत्रछा अवता , नवम सूत्र और शाया। १८ यह लोभहाभययुज्त है, और उसमें रहनेवाले सभी
प्राशी अत्यन्त जी हैं। १८ शभ सूत्रछा अवतरा, शभ सूत्र और छाया।
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श्री मायासंग सूत्र : 3
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