________________
अनु. विषय
पाना नं.
प्रछारछा न सनना यह तीर्थरोंडा अभिभत है । शिष्यो सर्वहा आयार्थ हे संतानुसारी होना चाहिये।
૧૩૭ ४ द्वितीय सूत्रछा अवतरा, द्वितीय सूत्र और ाया। १३८ ५ से परीषहोपसर्ग अथवा धातिधर्भ यतुष्टयो परापित
रछे स्वयं उन परीषहोपसर्गोसे या परतीर्थिष्ठोंसे परापित न हो र पिनोत तत्त्वछी विज्ञासा उरते हैं वह डिसीठा आतम्मन नहीं लेते है। रत्नत्रयठी आराधना रनेवाले उन भहापु३षोठा भन अहिर्वती नहीं होता । वे पूर्वाधार्या पारम्परिट उपदेशसे वीतरागडे वयनोंडा अभिज्ञ हो भने है, वे परतैर्थिठोंडा भतडा जाऊन उरतें है। तीर्थरोत तत्त्वौछो ठितने संयभी अपनी सह सुद्धिसे सभ लेते हैं, आर्हत आगमछे मल्याससे उन्हें समतें हैं, और हितने मायार्थ आदि उपदेश द्वारा उन्हें सभमते हैं।
૧૩૯ ६ तृतीय सूत्रमा अवतरा, तृतीय सूत्र और छाया।
१४४ ७ भेधावी भुनि, वीतरागोपदेश और मिथ्याष्टियों भतछी
तुलनात्म समीक्षा रछे, वीतरागोपध्यछो उपाध्य और भिथ्याष्टियों भतछो हेय सभॐ, इभी भी जीतरागो पहेशठा अतिभा न डरे । भोक्षाभिलाषी वीर मुनि संयभठा स्व३पछो भान हर उसजा मायरा हरता हमा मियरे । हे शिष्य ! तुभ सर्वहा वीतरागोपदेश और आयाथी
पहेशठा अवलम्जन र संयभायरामें पराम्भ रो।। १४४ ८ यतुर्थ सूत्रमा अवतरस, यतुर्थ सूत्र और छाया । ८ @लो मधोलो और तिर्यग्लोड, छन सभी स्थानोमें भिथ्यात्व, अविरति आहिस्त्रोत, अर्थात्-आस्वद्धार हैं। ये मास्त्रवद्धार नही स्त्रोत सभान हे गये हैं। उन्हीं आस्त्रवोंसे छव धर्मोंठो मांधते हैं।
૧૪૬ १० प्रश्वभ सूत्रमा अवतरा, प्रश्वभ सूत्र और छाया।
१४८ ११ वीतराागोपहिष्ट आगमछे परिज्ञाता भुनि, आवर्तछो
धर्यालोयना र आस्त्रवद्धारोंसे विरत होता । जोडे मास्त्रवोंठो दूर रनेडे लिये प्रवति ये भहापु३ष मुनि अर्भा होता है, और ज्ञान-हर्शनसे युज्त होता है। परमार्थ माननेवाला ये मुनि, अच्छी तरह विचार र डिसी
૧૪૬
श्री मायासंग सूत्र : 3