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अनु. विषय
॥ अथ यतृर्थ उद्देशः ॥
१ तृतीय उश ऐ साथ यतृर्थ हैश डा संजन्धन्थन । २ प्रथम सूत्र और छाया ।
3 शास्त्रानभिज्ञ और अल्पवयस् मुनि प्रो डाडी ग्रामानुग्राम विहार नहीं डरना चाहिये ।
पाना नं.
४ द्वितीय सुत्र और छाया ।
पो प्रो डाडि - विहारी मुनि, गृहस्थोंसे शिक्षावयनद्वारा उहिष्ट होनेपर भी डुपित हो भता है । जेसा अलिभानी मुनि महामोहसे युक्त होता है । सो विविध प्रकार परीषहोपसर्गभनित वेघ्नाजोंडा अनुभव डरना पडता है, इसलिये विवेडी भुनिझे जेसा नहीं होना चाहिये । उसे तो भगवान्डे प्रथनानुसार गुड्डी जाज्ञामें रहते हुये सावधानताडे साथ विहार डरना चाहिये ।
६ तृतीय सुत्र और छाया ।
७ आयार्य आज्ञानुसार यलनेवाला मुनि गमनागमनाहि डियायें शास्त्रोऽत रीतिडे अनुसार डरता हुआ गुइड में निवास पुरे । ली 5ली मुनिगुणों से युक्त मुनि द्वारा ली द्विन्द्रियाहि प्राशियोंडी विराधना हो भती है, परन्तु उन वह विराधना नित उर्भ उसी लवमें क्षीरा हो भते हैं, ज्यों प्रिं प्रभापूर्व5 3न प्रर्भो क्षपार्थ प्रायश्चित है ।
८ यतुर्थ सुत्रा अवतरा, यतुर्थ सुत्र और छाया । ८ जेसे मुनिडी दृष्टि और ज्ञान विशाल होता है । ये सर्वा र्यासमिति जाहिसे युक्त होता है । वह स्त्री जाहि लोगोंडी निरर्थता से पु परिचित होता है । वह स्त्री विषय वासना हो विविध उपायों से दूर डरता है । जेसा मुनि स्त्रियोंसे उनके घर सम्जन्धी डुछली नहीं पूछता, स्त्रियों से मेल- भेल जढानेडी एली ली येष्टा नहीं डरता । यह सर्वा वाग्गुप्त, अध्यात्मसंवृत हो डर पापोंसे सहा हूर रहता है । हे शिष्यों ! स प्रडारडे मुनिधर्मा पालन डरो। ॥ छति यतुर्थ उद्देशः ॥
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૩
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