SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 24
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ૨૩૩ ૨૩૩ ૨૩૪ २३४ ર૩પ २३ मारहवें सूचना अवतररारा और यारहवां सूत्र। २४ अपनी आत्माठो माह्य पार्थो से निवृत र, उसे ज्ञानहनियारित्र से युघ्त र पुषःजसे भुन्त हो जाता है। २५ तेरहवां सूत्र। २६ सत्यष्ठो-मर्थात्-गु३ डी साक्षिता से गृहीत श्रुतथारित्र धर्भ सम्मन्धी ग्रहाशी और मासेवनी शिक्षा हो, अथवा मागभन्छो विस्मृत न उरते हुमे तहनुसार मायरा रो। सत्यका अनुसरा उरनेवाला भेधावी संसार समुद्रछा । पारगाभी होता है और ज्ञानाघियुज्त होने से श्रुतयारित्र धर्मठो ग्रहया र वह मुनि भोक्षपर्शी होता है। २७ यौहवें सूचहा अवतरा और यौवां सूत्र।। २८ रागद्वेष हा वशवत्ती व क्षारामगुर वनडे परिवहन, भानन और पूY नछे लिये प्राशातिपात आहि असो में प्रवृति उरते हैं। इस प्रकार वे परिवन्टन, भानन और पूनछे विषय में प्रभाहशील होते हैं, प्रभाही हो पन्भ Yरा भरपहाजाव में अपने छोऽओ हेते हैं, अथवा -छस भ्रष्ठार वे उन परिवन्ध्नाठिों में आनन्द मानते हैं; परंतु वे परिवन्टनाहि उनछे हितळे लिये नहीं होते। २८ पन्द्रहवें सूचठा अवतरा और पन्द्रहवां सूत्र । उ० ज्ञानयास्त्रियुज्त मुनि दुःअभायासे स्पृष्ट होर भी व्याकुल नहीं होता । हे शिष्य ! तुभ पूर्वोत अर्थ अथवा वक्ष्यभारा अर्थ हो सय्छी तरह सभो । रागद्वेषरहित भुनि लोडालो प्रधव से मुड़त हो पाता है। शसभाप्ति। ૨૩૫ ૨૩૬ ૨૩૬ ॥ति तृतीयोटेशः ॥ શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૨ १७
SR No.006402
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 02 Sthanakvasi Gujarati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1957
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy