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________________ दीपिका-नियुक्ति टीका अ.८. सू.२६ अनत्याशातनायाः ४५ भेद निरूपणम् ६७७ मूलम्-अणच्चासायणा विणयतवे पणयालीसविहे, अरहंताइ भेयओ ॥२६॥ छाया-'अनत्याशातनाविनयतपः पञ्चचत्वारिंशद्विविधम्, अहंदादि भेदतः।२६। तत्त्वार्थदीपिका-पूर्व तावद्-दर्शनविनयतपसः प्रथमभेदः शुश्रूषणा विनयतपः प्ररूपितम्, सम्पति-अनत्याशातना विनयतपः स्वरूपं द्वितीयभेदं पश्चचत्वारिंशद विधत्वेन प्ररूपयितुमाह-'अणच्चासायणा' इत्यादि अनत्याशातनाविनयतपः-गुर्वादेरवर्णवादादि रूपात्याशातनानिवारणरूपं तावत् पश्च चत्वारिंशद्वविधं भवति, अहंदादि भेदतः । तथा चाहता मनत्याशातना १ आदिनाऽहत्मज्ञप्तस्य धर्मस्याऽनत्याशातना आचार्याणामनत्याशातना ३ उपाध्यायाना-मनत्याशातना ४ स्थविराणा मनत्याशातना ५ कुलस्याऽनत्याशातना६ 'अणच्चासाथणा विणयतवे' इत्यादि । सूत्रार्थ-- अर्हन्त आदि के भेद से अनत्याशातना विनय तप पैता लीस प्रकार का है ॥२६॥ तत्वार्थदीपिका-दर्शन विनय तप के प्रथम भेद शुश्रूषणाविनय तप का निरूपण किया जा चुका, अब उसके दूसरे भेद अनस्याशातना विनय तप के पैंतालीस भेदों की प्ररूपणा करते हैं गुरु आदि की आशातना-अवर्णवाद न करना अनत्याशतनाविनय तप कहलाता हैं। अर्हन्त आदि के भेद से वह पैतालीस प्रकार का है(१) अहेन्त की आशातना न करना (२) अहं त्प्रणीत धर्म की आशा. तना न करना (३) आचार्य की आशातना न करना (४) उपा. ध्याय की आशातना न करना (५) स्थविरों की आशातना न करना (६) कुल की अशातना न करना (७) गण की आशा. 'अणच्चासायणाविणयतवे' त्याहि । સૂવાથ–-અહંત આદિને ભેદથી અત્યાશાતના વિનય તપ ૪૫ प्रा२ना छ. ॥ २६ ॥ તત્ત્વાર્થદીપિકા-દર્શનવિનયતાના પ્રથમ ભેદ શુશ્રષણાવિનય તપનું નિરૂપણ કરવામાં આવ્યું હવે તેના બીજા ભેદ અનન્યાશાતના વિનય તપના પિસ્તાળીશ ભેદની પ્રરૂપણ કરીએ છીએ-- ગુરૂ આદિની આશાતના અવર્ણવાદ ન કરવી અનન્યાશાતનાવિનય તપ કહેવાય છે. અહંન્ત આદિના ભેદથી તે પિસ્તાળીશ પ્રકારના છે-(૧) અહેનતની આશાતના ન કરવી (૨) અહંત પ્રણીત ધર્મની આશાતના ન કરવી (૩) श्री तत्वार्थ सूत्र : २
SR No.006386
Book TitleTattvartha Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages894
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size49 MB
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