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________________ तत्त्वार्थसूत्रे च तद् अमेतिपातिचेति समुच्छिन्नक्रियाऽपतिपाति नामकं चतुर्थ शुक्लध्यानं भाति । उक्तश्च व्याख्याप्रज्ञप्ती श्रीभगवतीसूत्रे-२५-शतके ७ उद्देशके ८०३सूत्रे-'सुक्के झाणे च उधि हे पण्णत्ते, तं जहा-पुहत्त वितक्के सवियारी? एगत्त वितके अविधारी २सुहुमकिरिए अणियाही३ समुच्छिन्न किरिए अपडियाई 'इति, शुक्लध्यानं चतुर्विध प्रज्ञप्तम्, तद्यथा-पृथक्त्ववितर्कसविचारि, एकत्ववितर्कश्चाविचारि, सूक्ष्मक्रियानिवर्ति, समुच्छि क्रियाऽप्रतिपाति, इति ।७४। तत्वार्थनियुक्तिः-पूर्व तावदु-धर्मध्यानम् आज्ञाविचयादि भेदतश्चतुर्विधस्वेन प्रतिपादितम्, सम्पति- शुक्लध्यानं पृथक्त्ववितर्कसविचारादि भेदत. श्चतुर्विधरवेन प्रतिपादयितुमाह-'सुक्कज्झाणे चउविहे' इत्यादि, । ततशुक्लध्यानं चतुधिं भवति । अस्य शुक्लध्यानस्य ये चत्वारो भेदास्ते दीपिकायां जाने के कारण कायिकी आदि क्रियाएं सर्वथा निरूद्ध हो जाती हैं और जिसका कभी पतन नहीं होता वह समुच्छिन्न क्रिया अप्रतिपाति नामक चौथा शुक्लध्यान कहलाता है। भगवतीसूत्र शतन २५ उद्देशक ७ ! सूत्र ८०३ में कहा है-शुक्लध्यान चार प्रकार का कहा गया है-(१) पृथक्त्व वितर्क सविचार (२) एकत्व विचार अविचार (३) सूक्ष्म क्रियानिवर्ति और (४) समुच्छिन क्रियाअप्रतिपाती ।।७४॥ तत्वार्थनियुक्ति-पहले आज्ञा विचय आदि के भेद से धर्मध्यान चार प्रकार का कहा गश है, अब शुक्लध्यान के पृथक्त्व वितर्क सविचार आदि चार भेद बतलाते हैं शुक्लध्यान चार प्रकार का है। चारों प्रकारों का सविस्तर निरू કારણે કાલિકી આદિ ક્રિયાઓ સર્વથા વિરૂદ્ધ થઈ જાય છે અને જેનું કયારેય પણ પતન થતું નથી તે સમુચ્છિન્ન કિયા અપતિપાતી નામક ચે શું શુકલध्यान ४ाय छे. ભગવતીસૂત્ર શતક ૨૫ ઉદેશક ૭, સૂત્ર ૮૦૩માં કહ્યું છે-શુકલધ્યાન यार प्राना सेवामा माया छे. (१) ५५त्पवित सविया२ (२) 4વિત અવિચાર (૩) સૂક્ષ્મક્રિયાનિવતિ અને (૪) સમુછિન્નક્રિયા अप्रतिपाती ॥ ७४ ॥ તત્વાર્થ નિતિ-પહેલા આજ્ઞાવિચય આદિના ભેદથી ધર્મધ્યાન ચાર પ્રકારના કહેવામાં આવ્યા છે હવે શુકલ પાનના પૃથફવિતર્ક સવિચાર આદિ ચાર ભેદ બતાવીએ છીએ શુકલધ્યાન ચાર પ્રકારના છે ચારે પ્રકારનું વિગતવાર નિરૂપણ દીપિકા श्री तत्वार्थ सूत्र : २
SR No.006386
Book TitleTattvartha Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages894
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size49 MB
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