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________________ दीपिका-नियुक्ति टीका अ.७ स्.६३ दशविधगयश्चित्तनिरूपण र ४६९ एतत्पश्चममा मन्तरं तपः उच्यते ५ शयने-उपवेशने स्थाने-ऊर्ध्वस्थाने कायचेष्टायाः वर्जनं व्युत्सर्ग इत्युच्यते ६ इत्येवं षड्रविधं खल्लाभ्यन्तरं तपोव्यपदिश्यते।६२। मूलम्-पायच्छित्ते तवे दसविहे, आलोयण पडिकम्मण-तदुभयविवेगविउसग्गतवछेदमूलावणटप्पपारंचियभेयओ ॥६३॥ ___ छाया-प्रायश्चित्तं दशविधम्, आलोचन-प्रतिक्रमण-तदुमय-विवेकव्युत्सर्ग -तप-श्छेद-मूलानवस्थाप्य-पाराश्चिकभेदतः, ॥६३।। परिहार करके या पौरुषी का ध्यान रख कर मूल सूत्र का अध्याय अर्थात् पठन करना स्वाध्याय है। (५) ध्यान-जिसके द्वारा वस्तु का चिन्तन किया जाय वह ध्यान । यहां आर्तध्यान और रोद्रध्यान को त्याग कर धर्मध्यान और शुक्ल. ध्यान ही ग्रहण करना चाहिए । यह पांचवां आभ्यन्तर तप है। ___ (६) शयन या स्थान में अर्थात् बैठ कर या खडे होकर काय संबंधी चेष्टाओं का त्याग करना व्युत्सर्ग है। यह छह प्रकार का आभ्यन्तर तप है ॥६२॥ ___ 'पायच्छित्त दसविहे' इत्यादि सू०६३॥ सूत्रार्थ-प्रायश्चित्त दस प्रकार का है-(१) आलोचन (२) प्रतिक्रमण (३) तदुभय-आलोचन-प्रतिक्रमण (४) विवेक (५) व्युत्सर्ग (६) तप (७) छेद (८) मूल (९) अनवस्थाप्य और (१०) पारांचिक ॥६३।। કરીને અથવા પિરસીનું ધ્યાન રાખીને મૂળસૂત્રનું અધ્યયન અથવા પઠન ४२ स्वाध्याय छे. (૫) ધ્યાન-જેના વડે વરતુનું ચિન્તન કરવામાં આવે તે ધ્યાન અત્રે આર્તધ્યાન અને રૌદ્રધ્યાનને ત્યાગ કરીને ધર્મધ્યાન અને શુકલધ્યાન જ ગ્રહણ કરવું જોઈએ. આ પાંચમું આભ્યન્તર તપ છે. (૬) શયન અથવા સ્થાનકમાં અર્થાત્ ઉભા થઈને કે બેસીને, કાયા સંબંધી ચેષ્ટાઓને ત્યાગ કરે વ્યુત્સર્ગ છે. આ છ પ્રકારના આવ્યન્તર તપ છે. ૬રા __ 'पायच्चित्त दसबिहे' त्यादि सूत्रार्थ-प्रायश्चित्त ४० ४ारना छ-(१) मासायन (२) प्रतिभा (3) तमय-मायन-प्रतिभा (४) विवे: (५) व्युत्सम (6) त५ (७) छ। (८) भू (4) सनाय भने (१०) २iयि. ॥६॥ શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર ૨
SR No.006386
Book TitleTattvartha Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages894
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size49 MB
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