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________________ तत्त्वार्यसूत्रे तत्वार्थदीपिका - पूर्वसूत्रे प्रायश्चित्तविनय-वैयावृत्यादिभेदेन पविध माम्यन्तरं तपः प्ररूपितम्, तत्र - प्रथमोपात्तं प्रायश्चित्तं तावद् दशविधं भवतीति प्ररूपयितुमाह- पायच्छिते दस' इत्यादि । प्रायश्चित्तम्- आत्मशुद्धिकारक क्रियाविशेषो दशविधं वर्तते, आलोचनमतिक्रमण-तदुभय-विवेक-व्युत्सर्ग-पछेद- मूानवस्थाप्यपाराश्चिक भेदतः । तथा चाऽऽलोचन पायश्चित्तम् १ प्रतिक्रमप्रायश्चितम् २ तदुमयप्रायश्चित्तम् ३ विवेकमायश्चित्तम् ४ व्युत्सर्गप्रायश्चित्तम् ५ तपः प्रायश्चित्तम् ६ छेद प्रायश्चित्तम् ७ मूळप्रायश्चित्तम् ८ अनवस्थाप्यप्रायश्चित्तम् ९ पाराश्चिक मायश्चित्तम् १०, इत्येवं दशविधं प्रायश्चित्तम् । तत्राचार्या प्रमादस्य दशदोषविवर्जितं निवेदन मालोचन मुच्यते, एकान्तो Pso तन्त्रार्थदीपिका - पूर्व सूत्र में प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्य आदि के भेद से छह प्रकार के आभ्यन्तर तप का निरूपण किया गया, उनमें प्रथम आभ्यन्तर तप प्रायश्चित्त के दस भेदों का यहां निरूपण किया जाता है । प्रायश्चित्त अर्थात् आत्मशुद्धि कारक क्रिया के दस भेद हैं- ( १ ) आलोचन (२) प्रतिक्रमण (३) उभय-आलोचन - प्रतिक्रमण (४) विवेक (५) व्युस्सर्ग (६) तप (७) छेद (८) मूल (९) अनवस्थाप्य और पारांचिक | इस प्रकार (१) आलोचन प्रायश्चित्त (२) प्रतिक्रमण प्रायश्चित्त (३) तदुभयप्रायश्चित्त (४) विवेकप्रायश्चित्त (५) व्युत्सर्गप्रायश्चित्त (६) तपः प्रायश्चित्त और (१०) पारांचिकप्रायश्चित्त, इस तरह दस प्रकार का प्रायश्चित्त है । (१) आलोचन - आचार्य और उपाध्याय के समक्ष अपने प्रमाद તત્ત્વાર્થં દીપિકા—પૂર્વસૂત્રમાં પ્રાયશ્ચિત્ત, વિનય, વૈયાવ્રત્ય આદિનાં ભેદથી છ પ્રકારના આભ્યન્તર તપતુ નિરૂપણુ કરવામાં આવ્યુ, તેમાં પ્રથમ આભ્યન્તર તપ પ્રાયશ્ચિતના દશ ભેદોનુ' અહીં નિરૂપણ કરવામાં આવે છે. પ્રાયશ્ચિત્ત અર્થાત્ આત્મશુદ્ધિકારક ક્રિયાના દેશ ભેદ છે–(૧) આલેચન (२) प्रतिदुभयु (3) उलय - आसायन-प्रतिम (४) विवेक (4) व्युत्सर्ग (६) तय (७) छेछ (८) भूल (ङ) मनवस्थाच्य भने (१०) पायि या शेने (१) आसयन (२) प्रायश्चित्त (२) प्रतिभा आयश्चित्त ( 3 ) तहुलयप्रायश्चित (४) विवेऽप्रायश्चित्त ( 4 ) व्युत्सर्गप्रायश्चित्त (९) तपःप्रायश्चित्त (७) हेঃप्रायश्चित्त (८) भूतप्रायश्चित (5) अनवस्थाभ्यप्रायश्चित भने (१०) પાર ચિકપ્રાયશ્ચિત્ત આ રીતે દશ પ્રકારના પ્રાયશ્ચિત્ત છે. (૧) આલેચન-આચાય અને ઉપાથયની રૂબરૂ પેાતાના પ્રમાદનુ દશ શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર : ૨
SR No.006386
Book TitleTattvartha Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages894
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size49 MB
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