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________________ दीपिका-नियुक्ति टीका अ. ७१.१८-२४ विरत्यदिव्रतनिरूपणम् २५९ छाया-हिंसादिभ्यो विरति व्रतम् ।१८। मूलम्-तं सवओ देसओ महं-अणूय ॥१९॥ छाया-तत् सर्वतो देशतो, भहद-णु च । १९ मलम्-सव्वओ अणगारस्स, ते पंच देसओ अगारिस्स ते बारस ॥२०॥ छाया-सर्वतोऽनगारस्य, तानि पश्च, देशतोऽगारिणः तानि द्वादश । २० मूलम् - ताइं बारस, अणुव्वय-गुणव्वय-सिक्खावय भेया॥२१॥ छाया-तानि द्वादश 'ब्रतानि' अणुव्रत-गुणव्रत-शिक्षाव्रत भेदात् ।२१ 'हिंसाई हिंतो विरई वय ॥१८॥ सूत्रार्थ--हिंसा आदि पापों से निवृत्त होना व्रत कहलाता है ॥१८॥ 'तं सचओ देसओ महं-अणूथ' ।।१९।। सूत्रार्थ-विरति दो प्रकार की है-सर्व विरति और देशविरति । सर्वविरति को महावत कहते हैं, देशविरति को अणुव्रत कहते है ॥१९॥ 'सव्वओ अणगारस्त, ते पंच, देसमो आगारिस्स, ते बारस' । सूत्रार्थ--सर्वविरति अनगार-साधु के होते हैं। वह पांच हैं। देशविरति रूप बन गृहस्थ श्रावक के होते हैं । वे बारह हैं ॥२०॥ 'ताई बारस अणुव्वय, गुणव्यय-सिक्खावय भेगा ॥२१॥ सूत्रार्थ--अणुव्रत, गुणवत और शिक्षाबा के भेद से श्रावक के व्रत वारह प्रकार का हैं ॥२१॥ मूलम्-हिंसाईहितो विरई वयं १८ સૂત્રાર્થ–હિંસા આદિ પાપોથી નિવૃત્ત થવું વ્રત કહેવાય છે. ૧૮ मूलम्-तं सव्वओं देसओ महं-अणूय १९ સૂત્રાર્થ-વિરતિ બે પ્રકારની છે–સર્વવિરતિ અને દેશવિરતિ સર્વવિરતિને મહાવ્રત કહે છે, દેશવિરતિને અણુવ્રત કહે છે. ના मूलमू- सव्व ओ अणगाररस, ते पंच, देसओ आगरिस्स, ते बारस ॥२०॥ સૂવાથ–સર્વવિરતિ અણગાર સાધુને હોય છે તે પાંચ છે. દેશવિરતિ રૂપ વ્રત ગ્રહસ્થ શ્રાવકને હોય છે. તે બાર હોય છે. રબા मूलम्-ताई बारस, अणुव्ववय, गुणव्व-सिकूखावयभेया ॥२१॥ સૂત્રાર્થ—અણુવ્રત, ગુણવ્રત અને શિક્ષાવ્રતના ભેદથી શ્રાવકના વ્રત બાર પ્રકારના છે. ૨૧ त० ३२ શ્રી તત્વાર્થ સૂત્રઃ ૨
SR No.006386
Book TitleTattvartha Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages894
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size49 MB
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