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________________ तत्त्वार्थसूत्रे ज्ञानेन्द्रियं तावत् पुनर्द्विविधम् , भावेन्द्रियं द्रव्येन्द्रियञ्च । एवञ्च-स्पर्शनादीनि पञ्चापि ज्ञानेन्द्रियाणि प्रत्येकं द्विविधानि भवन्ति । द्रव्य-भावेन्द्रियभेदात् , तत्र सामान्यतो द्रव्यमयाणि-द्रव्यात्मकानि-इन्द्रियाणि आत्मपरिणतिरूपाणि भावेन्द्रियाणि व्यपदिश्यन्ते इति भावः ।।।। तत्त्वार्थनियुक्तिः पूर्वसूत्रे संख्यातइन्द्रियाणि प्ररूपितानि सम्प्रति-प्रकारान्तरेण तान्येव पुनः प्ररूपयितुमाह "पुणादुविहं, भाविदियं-दविदियंय-, इति । पूर्वोक्तचक्षुरादि भेदेन पञ्चविधमिन्द्रियं प्रकारान्तरेण पुनर्द्विविधं प्रज्ञप्तम् । भावेन्द्रियं-द्रव्येन्द्रियञ्च । तथा च-चक्षुरादीनि पञ्चापीन्द्रियाणि प्रत्येकं द्विविधानि भवन्ति । द्रव्य-भावेन्द्रियभेदात् । तत्र-सामान्यतो द्रव्यमयाणि-द्रव्यात्मकानि द्रव्येन्द्रियाणि व्यपदिश्यन्ते, भावात्मकानि-आत्मपरिणतिरूपाणि पुनर्भावेन्द्रियाणि उच्यन्ते । उक्तञ्च-प्रज्ञापनायाम्-१५ इन्द्रियपदे १-उद्देशे-'कइविहाणं भंते-१ इंदिया पण्णत्ता-३ गोयमा-१ दुविहा पण्णत्ता,तं जहा -दविदियाय-भाविंदियायत्ति-" कतिविधानि खलुभदन्त-१ इन्द्रियाणि प्रज्ञतानि ३ गौतम-१ द्विविधानि प्रज्ञप्तानि तद्यथा-द्रव्येन्द्रियाणिच-भावेन्द्रियाणि च । अभेदंबोध्यम्-प्रकृते च पुद्गलद्रव्यमेवाऽनन्तप्रदेशस्कन्धमात्मप्रयुक्तव्यापारापेक्षया यतते वक्ष्यमाणनिवृत्युपकरणरूपतया सर्वाणीन्द्रियाणि अनन्तप्रदेशानि-असंख्येयात्मप्रदेशाधिष्ठितानि च द्रव्यात्मकानि भवन्ति । तदन्यस्मिन् वक्ष्यमाणभावेन्द्रियद्वये-आत्मपरिणामो भावः प्रयत्नमातिष्ठते इति भावः ॥ प्रकार की हैं । साधारणतया जो इन्द्रियाँ पुद्गलमय-पुद्गल की परिगति हैं, वे द्रव्येन्द्रिय और जो आत्मा की परिणतिरूप हैं, वे भावेन्द्रिय कहलाती हैं ॥१८॥ तत्त्वार्थनियुक्ति-पूर्वसूत्र में इन्द्रियों की संख्या का प्रतिपादन किया गया है। अब दूसरे प्रकार से पुनः उनकी संख्या का निरूपण करने के लिए कहा है-इन्द्रियाँ पुनः दो प्रकार की हैं-भावेन्द्रिय और द्रव्येन्द्रिय । तात्पर्य यह है कि पूर्वोक्त पाँचों इन्द्रियाँ दो-दो प्रकार की हैं-भावेन्द्रिय और द्रव्येन्द्रिय । सामान्य रूप से पौद्गलिक इन्द्रियाँ जो नाम कर्म के द्वारा निर्मित हैं, वे द्रव्येन्द्रियाँ हैं और जो इन्द्रियावरण कर्म तथा वीर्यान्तराय कर्म के क्षयोपशम नाम से आत्मा की परिणति रूप उत्पन्न होती हैं, वे भावेन्द्रिय हैं। प्रज्ञापता सूत्र के १५३ इन्द्रिपद में कहा है प्रश्न-भगवन् ! इन्द्रियाँ कितनी प्रकार की हैं ? उत्तर-गौतम ! दो प्रकार की हैं-द्रव्येन्द्रियाँ और भावेन्द्रियाँ । तात्पर्य यह है कि द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त प्रदेशात्मक पुद्गलों के स्कंध हैं । वे निवृत्ति और उपकरण के भेद से दो प्रकार की हैं । असंख्यात आत्मप्रदेश उनमें रहते हैं । भावेन्द्रियाँ आल्मा का परिणमन विशेष हैं, उनका स्वरूप आगे के सूत्र में ही बतलाया जाएगा ॥१८॥ શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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