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________________ दीपिकानियुक्तिश्च अ०१ जीवस्य षड्भावनिरूपणम् ५५ क्षायोपशमिकभावस्यापि बहवो भेदाः प्रतिपादितास्तथापि संक्षेपेण वर्णितेषु अष्टादशविधेष्वेव तेषां सर्वेषामपि, अन्तर्भावो भवतीति पूर्वोक्तरीत्या न कश्चिद् विरोधो भवति, तथा हि___ “से किं तं खओव समिए ? दुविहे पण्णत्ते तं जहा खऔव समिए य खओव मनिप्फण्णे य । से किं तं खओवसमे ? चउण्हं घाइकम्माणं खओव समेणं, तं जहा णाणावरणिज्जस्स दंसणवरणिज्जस्स दंसणावरणिज्जस्समोहणिजस्स अंतरायस्स खोव समेणं से तं खओवसमे से किं तं खओवसमनिष्फण्णे ? अणेगविहेपण्णत्ते तं जहा-खओव समिआ आभि णिबोहिअ-णाणलद्धी जाव खओवसमिआ मणपज्जवणाणलद्धी, खओव समिआमइ अण्णाणलद्धी खओवसमिआ सुअ अण्णाणलद्धी खओवसमिआ विभंगणाणलद्धी खओव समिआ चक्खुदंसणलद्धी अचक्खुदंसणलद्धी ओहि दंसणलद्धी एवं सम्मदं सणलद्धी मिच्छादं सणलद्धी सम्ममिच्छादं सणलद्धी खओव समिआ सामाइअचरित्तं लद्धी एवं छेदोवट्ठाणलद्धी परिहारविसुद्धिअलद्धी सुहुम संपरायचरित्तलद्धी एवं चरित्ताचरित्त लद्धी खओव समिआ दाणलद्धी एवं लाभलद्धी भोगलद्धी उवभोलद्धी खओव समिआ वीरिअलद्धी एवं पंडिअवीरिअलद्धी बालवीरिअ लद्धी बालपंडिअवीरिअलद्धी खओव समिओ सोइंदियलद्धी जाव खओव समिआ फासिंदियलद्धी खओवसमिए आयारंगधरे एवं सुअगडंगधरे ठाणंगधरे समवायंगधरे विवाह पण्णत्तिधरे नायाधम्मकहाधरे उवास गदसाधरे अंतगडदसाधरे अनुत्तरोववइअदसाधरे विवागसुअधरे खओव समिए दिद्विवायधरे खओव समिए णवपुब्बी खओव समीए । जाव चउद्दसपुव्वी खओव समिए गणी खओव समिए वायए, से तं खओव सम निप्फण्णे से तं खओवसमनिष्फण्णे से ते खओव समिए" 'क्षायोपशमिक भाव क्या है ? क्षायोपशमिक भाव दो प्रकार का कहा गया है—क्षायोपशमिक और क्षयोपशमनिष्यन्न । क्षायोपशमिक क्या है ? चार घातिया कर्मों के अर्थात् ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तरम्यकर्म के क्षयोपशम से क्षयोपशमिक भाव होता है। क्षयोपशमनिष्पन्नभाव क्या है ? वह अनेक प्रकार का कहा गया है, जैसे----क्षायोपशमिक अभिनिबोधिक ज्ञानलब्धि यावत् क्षायोपशमिक मनःपर्यवज्ञानलब्धि, क्षायोपशमिक मत्यज्ञानलब्धि, क्षायोपशमिक श्रुताज्ञानलब्धि, क्षयोपशमि विम्यज्ञानलब्धि क्षायोपनामिक चक्षुदर्शनलब्धि, अवधिदर्शनलब्धि, इस प्रकार सम्यगदर्शनलब्धि, मिथ्यादर्शनलब्धि, सम्यङमिथ्यादर्शनलब्धि, क्षायोपनामिक चारित्रलब्धि; छेदोपस्थापनालब्धि, परिहार विशुद्धलब्धि, सूक्ष्मसाम्यरायलब्धि, चारित्राचारित्रलब्धि, क्षायोपनामिक दानलब्धि, क्षायोपनामिक लाभलब्धि, भोगलब्धि, उपभोग लब्धि, वीर्यलब्धि, पण्डितवीर्यलब्धि, बालवीर्यलब्धि, बालपण्डितवीर्यलब्धि, क्षायोपशमिक श्रोत्रेन्द्रियलब्धि, यावत् क्षायोपशमिक स्पर्शेन्द्रियलब्धि, શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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