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________________ तत्त्वार्थसूत्रे खीणसायावेयणिज्जे खीणअसायावेयणिज्जे अवेयणे निव्वेयणे खीणवेयणे सुभासुभवेयणिज्जकम्मबिप्पमुक्के खीणकोहे जावखीणलोहे खीणवेज्जे खीणदोसेखीणदंसणमोहणिज्जे खीणचरित्तमोहणिज्जे अमोहे निम्मोहे खीणमोहे मोहणिज्जकम्मविप्पमुक्के खीणणेरइआउए खीणतिरिक्खजोणिआउए खीणमणुस्साउए खीणदेवाउए अणाउए निराउए खीणाउए आउकम्मविप्पमुक्के गइजाइसरीरं गोवंगबंधण संघयणसंठाणअणेगबोंदिविंदसंघायविप्पमुक्के खीणसुभणामे खीणअसुभणामे अणामे निण्णामे खीणनामे सुभासुभणामकम्मविप्पमुक्के खीणउच्चागोएखीणनीआ गोए अगोए निग्गेए खीणगोएउच्चणी यगोत्तकम्म विप्पमक्के खीणदाणंतराए खीणलाभंतराए खीणभोगंतराए खीणउवभोगंतराए)खीणविरि यंभंतराए अणंतराए णिरंतराए खीणंतराए अंतारायकम्मविप्पमुक्के सिद्धे बुद्धे मुत्ते परिणिव्वुए अंतगडे सव्वदुक्खप्पहीणे, से तं खय णिप्फण्णे से तं खइए' इति । छाया-अथ कस्तावत् क्षायिकः द्विविधः प्रज्ञप्तः तद्यथा-क्षायिकश्च क्षयनिष्पन्नश्च अथ कस्तावत् क्षायिकः ? अष्टानां कर्मप्रकृतीनां क्षयः स एष क्षायिकः, अथ कस्तावत् क्षयनिष्पन्नः ? अनेक विधः प्रज्ञप्तः तद्यथा उत्पन्नज्ञानदर्शनधरः अर्हन् जिनः केवली क्षीणाभिनिबोधिकज्ञानावरणः क्षीणश्रुतज्ञानावरणः क्षीणावधिज्ञानावरणः क्षीणमनःपर्यवज्ञानावरणः क्षीणकेवलज्ञानावरणः अनावरणः निराकरणः क्षीणावरणः ज्ञानावरणीयकर्मविप्रमुक्तः केवलदर्शी सर्वदर्शी क्षीणनिद्रः क्षीणनिन्द्रानिद्रः क्षीणप्रचलः क्षीणप्रचलाप्रचलः क्षीणस्त्यानगृद्धिः क्षीणचक्षुर्दर्शनावरणः क्षीणाचक्षुर्दर्शनावरणः क्षीणावधिदर्शनावरणः क्षीण क्षायिकभाव क्या है ? क्षायिक भाव दो प्रकार का कहा गया है, यथा-क्षायिक और क्षयनिष्पन्न । क्षायिक क्या है ? क्षायिक आठ कर्मप्रकृतियों से उत्पन्न होता है। क्षयनिष्पन्न क्या ? क्षयनिष्पन्न अनेक प्रकार का है, जैसे—उत्पन्नज्ञानदर्शनधर, अर्हन्, जिन, केवली, क्षीणाभिनिबोधिकज्ञानावरण, क्षीणश्रुतज्ञानावरण, क्षीणावधिज्ञानावरण, क्षीणमनःपर्यवज्ञानावरण, क्षीणकेवलज्ञानावरण, निरावरण, क्षीणावरण, ज्ञानावणीयकर्मविप्रमुक्त, केवलदर्शी, सर्वदर्शी, क्षीणनिद्र, क्षीणनिद्रानिन्द्र, क्षीणप्रचल, क्षीणप्रचलाप्रचल, क्षीणत्यानगृद्धि, क्षीणचक्षुदर्शनावरण, क्षीणाचक्षुदर्शनावरण क्षीणावधिदर्शनावरण, क्षीणकेवलदर्शनावरण, अनावरण, निरावरण, क्षीणावरण, दर्शनावरणीयकर्मविप्रमुक्त, क्षीणसातावेदनीय, क्षीण-असातावेदनीय, अवेदन, निर्वेदन क्षीणवेदन शुभाशुभवेदनीयमर्मविप्रमुक्त, क्षीणक्रोधयावत् , क्षीणलोभ, क्षीणप्रेम, क्षीणद्वेष, क्षीणदर्शनमोहनीय, क्षीणचरित्रमोहनीय, अमोह, निर्मोह, मोहनीयकर्मविप्रमुक्त, क्षीणनैरयिकायु, क्षीणतिर्यंचायु, क्षीणमनुष्यायु, क्षीणदेवायु, अनायु, निरायु, क्षीणायु, आयुकर्मविप्रमुक्त, गति-जाति-सरीर-अंगोपांग-बंधन-संघानन-संहनन-संस्थान-अनेकशरीरवृन्दसंघातविप्रमुक्त, क्षीणशुभनाम, क्षीण-अशुभनाम, नाम, निर्नाम, क्षीणनाम, शुभाशुभनामकर्मविनमुक्त, क्षीणउच्चगोत्र, क्षीणनीचगोंत्र, अगोत्र, निगोत्र क्षीणगोत्र, गोत्रकर्मविप्रमुक्त, શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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