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________________ ६८० तत्त्वार्थसूत्रे पुनःप्रज्ञापनायां ४-पदे चोक्तम्-गब्भवकंतियचउप्पयथलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा जहण्णेणं अंतोमुहत्त उक्कोसेण तिण्णि पलिओवमाई-" इति । गर्भव्युत्क्रान्तिकचतुष्पदस्थलचरपञ्चेन्द्रियतिर्य ग्योनिकानां पृच्छा-जघन्येना.ऽन्तर्मुहूर्तम् ,उत्कृष्टेन त्रीणि पल्योपमानि, इति विस्तारेण तु-शुद्धपृथ्वीकायस्य द्वादशसहस्रवर्षाणि-उत्कृष्टेन स्थितिः, खरपृथिवीकायस्य तुद्वाविंशतिसहस्राणि--उत्कृष्टा स्थितिरवगन्तव्या, अप्कायस्य पुनः- सप्तसहस्रवर्षाणि-उत्कृष्टा स्थितिः वायुकायस्य-त्रिवर्षसहस्राणि उत्कृष्टेन स्थितिः, तेजःकायस्य त्रीणि रात्रिन्दिवानि-उत्कृष्टेन स्थितिः, वनस्पतिकायस्य पुन-दशवर्षसहस्राणि-उत्कृष्टा स्थितिः, इत्येवं रूपा भवस्थितिरेषामवसेया कायस्थितिस्तु--एतेषामसंख्येया अवसर्पिण्युत्सर्पिण्यः, वनस्पतिकायस्य पुनरनन्ता कायस्थितिरवगन्तव्या, द्वीन्द्रियाणां भवस्थितिरुत्कृष्टेन द्वादशवर्षाण्यवसेया. । त्रीन्द्रियाणां भवस्थितिरुत्कृष्टा एकोनपञ्चाशद्ररात्रिन्दिवानि, चतुरिन्द्रियाणामुत्कृष्टा भवस्थितिषण्मासा अवगन्तव्या, एतेषाञ्च-द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रियाणां कायस्थितिः संख्येयानि वर्षसहस्राणि, पच्चेन्द्रियतिर्यग्योनिजाः पञ्चविधाः सन्ति मत्स्याः--उरगाः परिसर्पा:--पक्षिणः - चतुष्पदाश्चेति तत्र--मत्स्या-नाम्-उरगाणां-भुजगानाञ्चोत्कृष्टेन पूर्वकोट्येव भवस्थितिः पल्योपमासंख्येयभागरूपा, । पुनः प्रज्ञापनासूत्र के चौथे पद में कहा है-'गर्भज चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचों के विषय में पृच्छा अर्थात् उनकी आयु कितने काल की है ? (उत्तर) जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट तीन पल्योपम ।' विस्तार में कहा जाय तो शुद्ध पृथ्वीकाय की उत्कृष्ट स्थिति बारह हजार वर्ष की, खर पृथ्वीकाय की बाईस हजार की और जलकाय की सात हजार वर्षे की स्थिति कही गई है । वायुकाय की तीन हजार की, तेजस्काय की तीन दिन-रात की तथा वनस्पतिकाय की दस हजार वर्ष की उत्कृष्ट स्थिति है । यह भवस्थिति समझना चाहिए । कायस्थिति इनकी असंख्यात उत्सर्पिणी अवसर्पिणी की तथा वनस्पतिकाय की अनन्त कायस्थिति द्वीन्द्रिय जीवों की उत्कृष्ट भवस्थिति बारह वर्ष की है, त्रीन्द्रियों की उनपचास दिन की है, चतुरिन्द्रियों की छह मास की है इन द्विन्द्रिय त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों की कायस्थिति संख्यात हजार वर्ष की है। पंचेन्द्रिय तिर्यच पाँच प्रकार के हैं--(१)मनुष्य (२) उरग (३) परिसर्प (४) पक्षी और (५) चतुष्पद । इनमें से मत्स्य, उरग और भुजग तिर्यचों की उत्कृष्ट भवस्थिति कोंटिपूर्व की होती है । पक्षियों की उत्कृष्ट भवस्थिति एक पल्योपम के असंख्यात भाग की और गर्भज चतुष्पदों की तीन पल्योपम की है। विशेष रूप से असंज्ञी मनुष्यों की भवस्थिति करोड़ पूर्व की, उरगों . की त्रेपन हजार वर्ष को भुजगों को बयालिस हजार वर्ष की, स्थलचर संमूर्छिमों की चौरासी हजार वर्ष की और खेचर की बहत्तरहजार वर्ष की भवस्थिति होती है । શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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