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________________ दोपिकानियुक्तिश्च अ० ५ सू० ३३ कर्मभूमिस्वरूपनिरूपणम् ६७५ कारकोऽस्ति संमूछिमो गर्भजश्व, संमूर्छिमः चतुर्दशप्रकारकः-उच्चारेस्वादिः गर्भजस्त्रिप्रकारकः, कर्मभूमिजः अकर्मभूमिजोऽन्तरद्वोपजश्च, कर्मभूमिजमनुष्यः पञ्चदशप्रकारकः, पञ्चभरताः, पञ्चऐरवताः, पञ्चविदेहाश्च, । अकर्मभूमिः त्रिंशत्प्रकारिका, पञ्च हैमवताः, पञ्च हैरण्यवताः, पञ्च हरिवर्षाणि, पञ्च रम्यकवर्षाणि, पञ्च देवकुरवः, एते त्रिंशतिः अकर्मभूमिकाः मनुष्याः सन्ति, षट्पञ्चाशद् अन्तर्वीपका मनुष्याः सन्ति, तीर्थकरचक्रवर्त्यादयः, अनृद्धि प्राप्ता अनेके सन्तिकलाचार्यशिल्पाचार्यादयः ॥ सू. ३२ ॥ मूलसूत्रम् - "कम्मभूमी भरह-एरवय-विदेहा, ता इयरा अकम्मभूमी-" ॥३३॥ छाया-कर्मभूमयो भरतैरवतविदेहाः, तदितरेऽकर्मभूमयः-” ॥ ३३ ॥ तत्त्वार्थदीपिका-तावत्-कर्मभूमिजा म्लेच्छाः इत्युक्तम्, तत्र-काः खलु कर्मभूमयः सन्तीति जिज्ञासायामाह-"कम्मभूमीभरह--एरवय-विदेहा' ताइयरा अकम्मभूमी--" इति । कर्मभूमयस्तावद् भरतै-रवत-विदेहाः, सन्ति, तदितरे-तेभ्यः खलु भरतैरवतविदेहेभ्यः इतरे-ऽन्ये हैमवत-१ हरिवर्ष–२ रम्यकवर्ष-३ हैरण्यबत-४ देवकुरू-५ त्तरकुरवश्व--६ षट् क्षेत्राणि-अक. मभूमयो भोगभूमयः सन्तीतिभावः । तथाच-पञ्चभरतवर्षाः, पञ्च- ऐरवताः, पञ्च महाविदेहाश्चेत्येवं पञ्चदशक्षेत्राणि कर्मभूमयो व्यपदिश्यन्ते पञ्च हैमवताः -पञ्च हरिवर्षा:--पञ्च रम्यकवर्षा:--पञ्च हैरण्यवताः-पञ्च देवकुरवः-पञ्चोत्तरकुरवः, षट्पञ्चाशद् अन्तर्वीपाश्च भोगभूमयस्ते व्यपदिश्यन्ते इति ॥ ३३ ॥ रेस्वाआदि । गर्भज तीन प्रकार के हैं कर्मभूमि अकर्मभूमि और अन्तर द्वीपज कर्मभूमि मनुष्य पन्द्रह प्रकार के हैं, पाँच भरत, पाँच ऐरवत और पाँच महाविदेह, अकर्मभूमि तीस प्रकार की हैं, पाँच हैमवत, पाँच हैरण्यवत पाँच हरिवास पाँच रम्यकवास पाँच देवकुरु और पांच उत्तरकुरु ये तीस अकर्मभूमि के मनुष्य हैं, छप्पन अन्तर्वीप के मनुष्य हैं, ऋद्धि प्राप्त अनेक प्रकार के हैं, तोर्थकर चक्रवर्ती आदि अनृद्धि प्राप्त अनेक प्रकार के हैं कलाचार्य शिल्पाचार्य आदि ॥सू० ३२॥ 'कम्मभूमीभरह' इत्यादि ॥ सू० ३३॥ सूत्रार्थ-भरत, ऐरवत और विदेह क्षेत्र कर्मभूमि हैं । इनके सिवाय अन्य सब क्षेत्र अकर्मभूमि हैं ॥३३॥ तत्त्वार्थदीपिका-इससे पहले कर्मभूमिज म्लेच्छों का उल्लेख किया गया है, सो वह कर्मभूमियाँ क्या हैं ? इस जिज्ञासा का समाधान करने के लिए कहते हैं भरत, ऐरवत और विदेह क्षेत्र कर्मभूमियाँ हैं, इनके अतिरिक्त हैमवतवर्ष, हरिवर्ष, रम्यकवर्ष, हैरण्यवतवर्ष, देव कुरु और उत्तरकुरु, ये छह क्षेत्र अकर्मभूमियाँ-भोगभूमियाँ हैं। इस प्रकार अढ़ाई द्वीप के पाँच भरत, पाँच ऐरवत और पाँच महाविदेह, ये पन्द्रह कर्मभूमियाँ कहलाती हैं । पाँच हैमवत, पाँच हरिवर्ष, पाँच रम्यकवर्ष, पाँच हैरण्यवतवर्ष, पाँच देवकुरु और पाँच उत्तरकुरु, इस प्रकार तीस तथा छप्पन अर्न्तद्वीप अकर्मभूमि या भोगभूमि हैं ॥३३॥ શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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