SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 643
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दीपिकानियुक्तिश्च अ ५ सू. २० द्वीपसमुद्राणामायामविष्कम्भाकारादिनिरूपणम् ६२१ तत्त्वार्थ नियुक्तिः- पूर्वसूत्रे-जम्बूद्वीपादिद्वीपानां-लवणोदधिप्रभृति समुद्रणाञ्च यथासम्भवं नामतो निर्देशः कृतः सम्प्रति-तेषामेव द्वीप-समुद्राणामायाम-विष्कम्भाकारादिस्वरूपाणि प्ररूपयितुमाह ---"ते दोवसमुद्दा दुगणा-दुगुणा वलयागारा पुव्वपुव्वपरिक्खेविणो य-" इति । ते खलु-पूर्वोक्ताः जम्बूद्वीप-लवणोदधि प्रभृतयो द्वीपसमुद्राः द्विगुणद्विगुणाः पूर्वपूर्वद्वीपसमुद्राऽपेक्षया-उत्तरोत्तरद्वीपसमुद्राः द्विगुणद्विगुणाधिकाः सन्ति । यथा जम्बूद्वीपरय यो विष्कम्भो नामविस्तारः, तदपेक्षया-द्विगुणविष्कम्भो लवणोदधिरस्ति । एवम्-लवणोदधेर्यो विष्कम्मोवर्तते ततो द्विगुणविष्कम्भो धातकी खण्डद्वीपोऽस्ति । तद् द्विगुणविष्कम्भः कालोदधिः समुद्रोऽस्ति, तद् द्विगुणविष्कम्भः पुष्करवरो द्वीपो वर्तते, तद् द्विगुणविस्तारः पुष्करवरः समुद्रोऽस्ति, इत्येवं रीत्या जम्बूद्वीपादयो द्वीपसमुद्राः स्वयम्भूरमणसमुद्रपर्यन्ताः येन-येन क्रमेण व्यवस्थिता निर्दिष्टा वा सन्ति, तेनैव क्रमेण लवणसमुद्रप्रभृति स्वयम्भूरमणसमुद्रपर्यन्तं द्विगुणविष्कम्भा भवन्ति-इत्यवसेयम् तत्क्रमानुसारेणैव पूर्व पूर्व द्वीपसमुद्रपरिक्षेपिण उत्तरोत्तरद्वीपसमुद्रा सन्ती त्यभिप्रायेणाह-पूर्व पूर्वपरिक्षेपिण इति । तथाच-जम्बूद्वीपं परिवेष्टय लवणोदधिरस्ति, लवणोदधिं परिवेष्टय धातकीखण्डो द्वीपश्चकास्ति, धातकोखण्डद्वीपञ्च परिवेष्टय कालोदधिसमुद्रोऽस्ति, कालोदधिं च परिवेष्टय पुष्करवरो तत्त्वार्थनियुक्ति–पूर्वसूत्र में जम्बूद्वीप आदि द्वीपों का तथा लवणोदधि आदि समुद्रों का यथासंभव नामनिर्देश किया गया है । अब उन्हीं द्वीप-समुद्रों की लम्बाई-चौढ़ाई, आकृति आदि आदि का प्ररूपण करने के लिए कहते हैं--- पूर्वोक्त जम्बूद्वीप आदि द्वीप और लवणोदधि आदि समुद्र दुगुने--दुगुने हैं अर्थात् पहलेपहले वाले की अपेक्षा अगले-अगले द्विगुण अधिक हैं। जम्बूद्वीप का जितना विस्तार है, उससे दुगुना लवणसमुद्र का विस्तार है । इसी प्रकार लवणसमुद्र के विस्तार की अपेक्षा धातकीखण्ड द्वीप का विस्तार दुगुना है। धातकोखण्ड के विस्तार से कालोदधि समुद्र का विस्तार दुगुना है । कालोदधि की अपेक्षा पुष्करवर द्वीप का और पुष्करवर द्वीप को अपेक्षा पुष्करवर समुद्र का विस्तार दुगुना है। इस प्रकार जम्बूद्वीप से लेकर स्वयंभूरमण समुद्र पर्यंत जिस क्रम से द्वीप और समुद्र अवस्थित हैं और जिस क्रम से उनमें से कुछ का नामोल्लेख किया गया है, उसी क्रम के अनुसार उनका विस्तार दुगुना-दुगुना समझना चाहिए । पूर्वोक्त नामों के अनुक्रम से ही वे द्वीप और समुद्र एक-दूसरे को वेष्टित किये हुए हैं, इस आशय को व्यक्त करने के लिए उन्हें 'पूर्वपूर्वपरिक्षेपिणः' कहा है । तात्पर्य यह है कि जम्बूद्वीप को परिवेष्टित करके लवणसमुद्र स्थित है, लवणसमुद्र को परिवेष्टित करके धातकीखण्ड द्वीप रहा हुआ है, धातकोखण्ड को घेर कर कालोदधि समुद्र फैला हुआ है और कालोदधि समुद्र શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy