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________________ ६२० तत्वार्थसूत्रे “यावन्ति लोके-शुभानि नामानि, शुभा वर्णा यावत् शुभा स्पर्शा एतावन्तो द्वीप समुद्रा नामधेयैः प्रज्ञप्ता" इति ॥१९॥ __ मूल सूत्रम् “ते दोवसमुद्दा दुगुणदुगुणा वलयागारा पुव्वपुव्व परिक्खेविणो य-" छाया-"ते द्वोपसमुद्रा द्विगुणद्विगुणा वलयाकाराः पूर्वपूर्वपरिक्षेपिणश्च" ॥२० तत्त्वार्थदीपिका—पूर्वसूत्रे जम्बूद्वीपादि द्वीपानां लवणोदधि-प्रभृति समुद्राणाञ्च निरूपणं कृतम् सम्प्रति-तेषां विष्कम्भायामाकारादि स्वरूपाणि प्रतिपादयितुमाह -- 'ते दीवसमुदा" इत्यादि । ते खलु-जम्बूद्वीपा लवणोदधिप्रभृतयो द्वीपसमुद्राः द्विगुणद्विगुणाः पूर्वपूर्वापेक्षया परपराः द्विगुण-द्विगुणविस्तारा वलयाकारा:-वलयाकृतयः--- __ वलयो-वृत्तम् मण्डलम् आकारो येषां ते वलयाकाराः करकङ्कणादिवत् गोलाकृतयःसन्ति पूर्वपूर्वपरिक्षेपिणश्च पूर्वपूर्वद्वीपसमुद्रान् यथाक्रमं परपरद्वीपसमुद्राः परिवेष्टय स्थिताः सन्तीतिभावः । तथा च-जम्बूद्वीपनाम्नः प्रथमद्वीपस्य यो विस्तारो वर्तते तद्विगुणविस्तारो लवणोदधिरस्ति । एवम्-लवणोदधेर्यो विष्कम्भों नाम विस्तारो वर्तते-तद् द्विगुणविष्कम्भो धातकीखण्डनाम्नो द्वीपस्य भवति । तद् द्विगुणविष्कम्भः कालोदधिसमुद्रोऽस्ति, तद् द्विगुणविष्कम्भः पुष्करवरोनाम द्वीपो वर्तते , तद्विगुणविष्कम्भः पुष्करवरः समुद्रः इत्यादिरीत्या विस्तारः उत्तरोत्तरस्याऽवगन्तव्यः ॥२०॥ 'लोक में जितने शुभ नाम हैं, शुभ वर्ण यावत् शुभ स्पर्श हैं, उतने ही नाम वाले द्वोप और समुद्र भी कहे गये हैं ॥१९॥ 'ते दीवसमुद्दा दुगुण' इत्यादि ॥सू० २०॥ सूत्रार्थ-वे द्वीप और समुद्र दुगुने दुगुने विस्तार वाले, वलय के आकार के और पहलेपहले वालों को घेरे हुए हैं ॥२०॥ तत्त्वार्थदीपिका—पूर्वसूत्र में जम्बूद्वीप आदि द्वीपों का लवणोदधि आदि समुद्रों का निरूपण किया गया है । अब उनकी लम्बाई-चौड़ाई आदि का प्रतिपादन करने के लिए कहते हैं पूर्वोक्त जम्बूद्वीप और लवणसमुद्र आदि द्वीप और समुद्र दुगुने दुगुने विस्तार वाले हैं अर्थात् पूर्व-पूर्व की अपेक्षा उत्तर-उत्तर का विस्तार दुगुना-दुगुना है । ___ सभी द्वीप और समुद्र चूड़ी के आकार के जैसा वृत्त अर्थात् गोल हैं । वे सब पूर्व-पूर्व वाले को घेरे हुए स्थित हैं । अर्थात् क्रम के अनुसार पहले द्वीप को आगे का समुद्र घेरे हुए है, उस समुद्र को आगे का द्वीप घेरे हुए है और उसको भी आगे का समुद्र घेरे हुए है । इस प्रकार पहले द्वीप-जम्बूद्वीप का जितना विस्तार है, उससे दुगुना विस्तार लवणसमुद्र का है । लवणसमुद्र का जितना विस्तार है उससे द्विगुणित धातकोखण्ड द्वोपका विस्तार है । धातकीलंड द्वीप से कालोदधि समुद्र का दुगुना विस्तार है, कालोदधि समुद्र से पुष्करवर द्वीप का दुगुना विस्तार है और पुष्करवर द्वीप की अपेक्षा पुष्करवर समुद्र का दुगुना विस्तार है । यही क्रम आगे भो सर्वत्र समझ लेना चाहिए ॥२१॥ શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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