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________________ ५९४ तत्वार्थसूत्रे नित्यग्रहणेन च गतिजाति-शरीराङ्गो-पाङ्ग कर्मनियमात् नरकगतौ-नरकजातौ च नैरन्तर्येण भवक्षयोद्वर्तनपर्यन्तमुपर्युक्ता लेश्या परिणामशरीरवेदना विक्रियाः तेषामशुभतरा एव भवन्ति । न तु कदाचित् भवन्ति । इति विज्ञाप्यते, नयननिमेषमात्रमपि नारकाणामशुभतरलेश्यादिभिर्वियोगो न भवतीति नित्यपदोपादेन व्यज्यते एवञ्च--रत्नप्रभायां तीव्राः कापोतिकलेश्या स्तेषां खलु नारकाणां मानसपरिणामविशेषरूपा भवन्ति तदपेक्षया तीब्रतरसंक्लेशाऽध्यवसानाः कापोतलेश्याः शर्कराप्रभायां तेषां भवन्ति ततोऽपि-तीव्रतरसंक्लेशाध्यवसाना स्तीव्रतमाःकापोतलेश्या स्तीवाश्च नीललेश्या स्तेषां वालुका प्रभायां भवन्ति । तदपेक्षयापि-तीव्रतरसंक्लेशाव्यवसाना स्तीव्रतरा नीललेश्या पङ्कप्रभायां भवन्ति, ततोऽपि तीव्रतरसंक्लेशाध्यवसाना स्तीव्रतमा नीललेश्याः, तीव्राश्च कृष्णले श्या स्तेषां धूमप्रभायां भवन्ति ततोऽपि तीव्रतरसंक्लेशाध्यवसाना स्तीव्रतराः कृष्णलेश्या स्तमःप्रभायां तेषां भवन्ति तदपेक्षयापितीव्रतरसंक्लेशाध्यवसानास्तीव्रतमाः कृष्णलेश्यास्तमस्तमःप्रभायां तेषां नारकाणां भवन्ति, तेषाञ्च नारकाणां पुद्गलपरिणामोऽशुभतरो भवति । तथहि-शब्द-वर्ण-रस-गन्ध-स्पर्श-संस्थान-भेद-गति-बन्धना-ऽगुरु-लघुपरिणामभेदेन.. और धूमप्रभा में उससे भी अधिक अशुभ हैं, तमः प्रभा में उससे भी अधिक तो ततस्तमः प्रभा में सब से अधिक अशुभ हैं। सूत्र में 'नित्य' शब्द को जो ग्रहण किया है, उससे यह प्रकट होता है कि नरक गति में उपर्युक्त लेश्या, परिणाम, शरीर, वेदना और विक्रिया सदैव अर्थात् नरक भव के प्रारंभ से लेकर भव के क्षय होने तक अशुभतर ही बनी रहती है । ऐसा नहीं होता कि कभी शुभ हो जाय ! पलक मारने जितने अल्प समय के लिए भी नारक जीवों का अशुभतर लेश्या आदि से वियोग नहीं होता है। इस प्रकार रत्न प्रभा पृथ्वी में नारक जीवों की तीव्र मानसिक परिणामरूप कापोत लेश्या होती है। उसकी अपेक्षा अधिक तीव्र अध्यवसाय रूप कापोत लेश्या शर्कराप्रभा में होती है । उससे भी अधिक तीव्रतर अध्यवसाय रूप तीव्रतम कापोत लेश्या और तीव्र नील लेश्या वालुकाप्रभा में होती है । वालुकाप्रभा की अपेक्षा तीव्रतर संक्लेश स्वरूप नीललेश्या पंकप्रभा में पाई जाती है । पंकप्रभा की अपेक्षा भी तीव्रतर संक्लेशमय तीव्रतम नीललेश्या और तीव्र कृष्णलेश्या धूमप्रभा में होती है। धूमप्रभा की अपेक्षा भी तीव्रतर संक्लेशरूप तीव्रतर कृष्णलेश्या तमःप्रभा में होती है और उससे भी अधिक तीव्र अध्यवसाय रूप तीव्रतम कृष्णलेश्या तमस्तमःप्रभा में नारक जीवों को होती है। ___ नारकों में दस प्रकार का अशुभ पुद्गल परिणाम पाया जाता है, जो इस प्रकार हैं(१) अशुभ वर्ण (२) अशुभ गंध (३) अशुभ रस (४) शब्द (५) अशुभ स्पर्श (६) શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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