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________________ तत्त्वार्थसूत्रे दर्शनावरणकर्मबन्ध हेतवो भवन्ति -इति फलितम् ।। यतोह्येतैः कारणभूतैरध्यवसायविशेषैः प्रत्यनीकतादिभिरात्मनः परिणामविशेषैर्नवविधदर्शनावरणाख्यं कर्म बध्यते, ___ एवं-पूर्वोक्तस्वरूपैः प्रत्यनीकतादिभिरध्यवसायविशेषैरात्मनः परिणामविशेषैः चक्षुरचक्षु रवधिकेवलरूपस्य चतुर्विधदर्शनस्य सामान्य मात्रोपयोगरूपस्य चेतनादि विशेषस्य चक्षुर्दर्शनावरणादि नवविधमावरणं दर्शनावरणाख्यं कर्मबन्धहेतवो भवन्तीति भावः । तत्र-चक्षुर्दर्शनावरणाऽचक्षुर्दर्शनावरणावधिदर्शनावरणकेवलदर्शनावरण निद्रा, निद्रा निद्रा प्रचला प्रचला प्रचला, स्त्यानर्द्धयश्च पूर्वोक्तस्वरूपा एतेऽपि पञ्च, चक्षुर्दर्शनादि विघातकारित्वात् दर्शनावरणपदेनोच्यन्ते । एवं दर्शनावरणं कर्म नवविधं कथ्यते । तथाचोक्तं व्याख्याप्रज्ञप्तौ भगवति सूत्रे ८, शतके ९-उद्देशके “णाणावरणिज्जकम्मा सरीरप्पओगबंधेणं भंते ! कस्स कम्मस्स उदएणं ? गोयमा! नाणपडिणीययाए णाणनिण्हवणयाए णाणंतराएणं, गाणप्पदीसेणं गाणच्चासायणाए गाणविसंवादणाजोगेणं दरिसणावरणिज्जकम्मा सरिरप्पओगबंधेणं भंते........गोयमा ! दंसणपडिणीययाए एवं जहा णाणावरणिज्जं नवरं दंसण नाम घेत्तवं” इति । छाया-ज्ञानावरणीयकर्म शरीरप्रयोगबन्धः खलु भदन्त ? कस्य कर्मण उदयेन-गौतम ! ज्ञानप्रत्यनीकतया, ज्ञाननिह्नवतया, ज्ञानान्तरायेण, ज्ञानप्रद्वेषेण, ज्ञानासातनया ज्ञानविसंवादना छह, नौ प्रकार के दर्शनावरणकर्म बन्ध के कारण होते हैं यह जाना जाता है क्योंकि कारण भृत अध्यवसाय विशेष अर्थात् आत्मा का परिणाम विशेष जो प्रत्यनीकता आदि हैं इन से नौ प्रकार के दशेनावरण कर्म का बन्ध होता है। यहां चक्षुर्दर्शनावरण १, अचक्षुदर्शनावरण २, अवधिदर्शनावरण ३, केवलदर्शनावरण, ये चार आवरण, ताथा निद्रा १ निद्रानिद्रा २, प्रचला ३, प्रचलाप्रचला ४, और स्त्यानर्द्धि ५ ये पांच भी चक्षुर्दर्शन आदि चार प्रकार के दर्शन के विघातक होने से दर्शना वरण पद से कहे जाते हैं । इस प्रकार दर्शनावरण कर्म नौ प्रकार का कहाजाता है । यहां ज्ञानावरणकर्म ज्ञान संबंधी प्रत्यनीकता आदि छहकारणों से बांधा जाता है और उस उस ज्ञान के आवरणरूप पांच प्रकार से भोगा जाता है । इसी प्रकार दर्शनावरण कर्म दर्शन संबंधी प्रत्यनीकता आदि छह कारणों से बांधा जाता है और चक्षुर्दर्शनावरण आदि चार और निद्रा आदि पांच ऐसे नौ प्रकार से भोगा जाता है। ___ भगवती सूत्र के ८ वें शतक के ९ ३ उद्देशक में कहा है-भगवन् ! किस कर्म के उदय से ज्ञानावरणीयकर्म का बंध होता है ? 'गौतम ! ज्ञान प्रत्यनीकता (शत्रुता-विरोध) से. ज्ञान का अपलाप करने से, ज्ञान प्राप्ति में अन्तराय डालने से, ज्ञान संबंधी प्रद्वेष से, ज्ञान की आशातना करने से और ज्ञान सम्बन्धी विसंवादना से ज्ञानावरणीय कर्म का શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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