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________________ तत्त्वार्यसूत्रे तत्त्वार्थनियुक्ति:-पूर्व ज्ञानावरणादि द्वयशोतिप्रकारपापकर्मणां स्वरूपाणि प्ररूपितानि, सम्प्रति-तेषां मध्ये पञ्च ज्ञानावरण नव दर्शनावरणपापकर्मबन्धनहेतून् प्ररूपयितुमाह 'णाणदसणाणं पडिणीययाइहिं णाणदंसणावरणं' इति । ज्ञानदर्शनयोः प्रत्यनीकताटिभि निदर्शनावरणम् इति । ज्ञानस्य-मतिश्रतावधिमनःपर्यवकेवलज्ञानरूपस्य पञ्चविधस्य दर्शनस्य च चक्षुरचक्षुरवधिकेवलरूपस्य चतुर्विधन्य ये प्रत्यनीकतादय उपघाताः तैः खलुउपघातै निावरणं-दर्शनावरणरूप पापकर्मणी बध्येते ।। तत्र-ज्ञानविषयाः प्रत्यनीकतादयो ज्ञानावरणर पापकर्मणो बन्धनहेतवो भवन्ति, दर्शनविषयाः प्रत्यनीकतादयश्च दर्शनावरणस्य पापकर्मणो बन्धहेतवो भवन्ति । इति द्रष्टव्याः-अत्रादिशब्देन निह्नवता, अन्तराय; प्रद्वेषः अत्याशातना विसंवादनायोगः, एषां पञ्चानां पदानां संग्रहः कर्त्तव्यः, तेन ज्ञानस्य दर्शनस्य च प्रत्यनीकतादिभिः षड्भिर्हेतुभि निावरणं दर्शनावरणं च कर्म बध्यते इति बोध्यम्, तथाहि-ज्ञानप्रत्यनीकतया १, ज्ञाननिह्नवतया २, ज्ञानान्तरायेण ३, ज्ञानप्रद्वषेण ४, ज्ञानात्याशातनया ५, ज्ञानविसंवादनायोगेन ६, इत्येवं संयोज्यम् । तत्त्वार्थनियुक्ति--पूर्वसूत्र में ज्ञानावरण आदि बयासी प्रकार के पापों का स्वरूप कहा गया है अब उनमें से प्रथम पाँच प्रकार के ज्ञानावरण और नौ प्रकार के दर्शनावरण पापकर्म के बन्ध के कारण बताते हैं-'णाणदंसणाणं' इत्यादि । ज्ञान और दर्शन की प्रत्यनीकता आदि करने से ज्ञानावरण और दर्शनावरण कर्म बंधता है । ज्ञान-मति श्रुत, अवधि, मनःपर्यव और केवलज्ञान के भेद से पाँच प्रकार का होता है । दर्शन-चक्षु, अचक्षु अवधि और केवलदर्शन के भेद से चार प्रकार का होता है । इस प्रकार पाँच प्रकार के ज्ञानके और चार प्रकार के दर्शन के प्रत्यनीकता आदि छह उपघातक होते हैं । इनके आचरण से ज्ञानावरण और दर्शनावरण कर्म का बन्ध होता है। ___ ज्ञान के पाँच भेद होने से ज्ञानावरण भी पाँच प्रकार का होता है, दर्शनावरण नौ प्रकार का होता है-चक्षुर्दर्शनावरण, अचक्षुर्दर्शनावरण अवधिदर्शनावरण, और केवलदर्शनावरण, एवं–निद्रा, निद्रा निद्रा, प्रचला, प्रचला प्रचला और स्त्यानर्द्धि ऐसे नौ प्रकार का है। यहां ज्ञान विषयक प्रत्यनीकता आदि ज्ञानावरण पापकर्म के बंध के कारण और दर्शन विषयक प्रत्यनीकता आदि दर्शनावरण कर्म के बन्ध के कारण होते हैं ऐसा समझना चाहिये । यहां आदि शब्द से निह्नवता अन्तराय, प्रद्वेष, अत्याशातना और विसंवादनायोग, इन पांच पदों को ग्रहण करना चाहिये। ___ अर्थात् ज्ञान और दर्शन को प्रत्यनीकता आदि छह कारणों से ज्ञानावरण और दर्शनावरण का बन्ध होता है, ऐसा कहना चाहिये जैसे-ज्ञान प्रत्यनीकता १ ज्ञान निह्नवता २, ज्ञानान्तराय ३, ज्ञानप्रद्वेष ४, ज्ञान की अत्याशातना ५ और ज्ञानका विसंवादनयोग ६ ऐसे શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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