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तत्त्वार्थसूत्रे स्त्यानर्द्धिः, चक्षुर्दर्शनावरणम्-अचक्षुर्दर्शनावरणम्-अवधिदर्शनावरणम्-केवलदर्शनावरणम्-इति । असातावेदनीयञ्चैकविघमेव भवति ।
___ उक्तश्च प्रज्ञापनायां २३-पदे २-उद्देशे-'"असायावेयणिज्जे य-" इति, असातावेद्नीयञ्चेति । सातावेदनीयन्तु-पुण्यकर्मरूपमवसेयम् । मिथ्यात्वञ्च-मिथ्यात्ववेदनीयरूपमेकविधमेव । यद्यपि-प्रज्ञापनायां २३-कर्मबन्धपदे २-उद्देशके-“मोहेणिज्जेणं भंते ! कम्मे कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा--दंसणमोहणिज्जे य-चरित्तमोहणिज्जे य । दसणमोहणिज्जे णं भंते ! कम्मे कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! तिविहे पण्णत्ते तं जहा-सम्मत्तवेयणिज्जे, मिच्छत्तवेयणिज्जे, सम्मामिच्छत्तवेयणिज्जे-" इति । मोहनीयं भदन्त-! कर्म कतिविधं प्रज्ञप्तम्-2 गौतम ! द्विविधं प्रज्ञप्तम् , तद्यथा--दर्शनमोहनीयञ्च चारित्रमोहनीयञ्च । दर्शनमोहनीयं खलु भदन्त ! कर्म कतिविधं प्रज्ञप्तम् ! त्रिविधं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा-- सम्यक्त्ववेदनीयम्-मिथ्यात्ववेदनीयम्-सम्यग्मिथ्यात्ववेदेनीयञ्चेतिरीत्या त्रिविधमुक्तम् तथा सम्यक्त्ववेदनीय-सम्यग् मिथ्यात्ववेदनीयकर्मणोः पुण्यत्वपरिणतिसम्भवात् पापकर्मपरिणतत्वाभावेन पापकर्मणि केवलं मिथ्यात्वकर्मणः परिगणनं बोध्यम् ।
षोडशकषायास्तु-अनन्तानुबन्धी क्रोधः, अनन्तानुबन्धीमानः, अनन्तानुबन्धी माया, अनन्तानुबन्धीलोभः, अप्रत्याख्यानक्रोधः, अप्रत्याख्यानमानः, अप्रत्याख्यानमाया, अप्रत्याख्यास्त्यानर्द्धि (६) चक्षुर्दर्शनावरण (७) अचक्षुर्दर्शनावरण (८) अबधिदर्शनावरण केवलदर्शनावरण ।'
प्रज्ञापना सूत्र के तेईसवें पद के द्वितीय उद्देशक में कहा है-'आसतावेदनीय' सातावेदनीय कर्म पुण्यप्रकृति में परिगणित किया जा चुका है । मिथ्यात्ववेदनीय रूप मिथ्यात्व एक ही प्रकार का है । प्रज्ञापना में २३ वें कर्मबंधपद के दूसरे उद्देशक में कहा है
प्रश्न---भगवन् ! मोहनीय कर्म कितने प्रकार का कहा है ? उत्तर-गौतम ! दो प्रकार का कहा है-दर्शनमोहनीय और चारित्रमोहनीय । प्रश्न-भगवन् ! दर्शनमोहनीय कर्म कितने प्रकार का है ?
उत्तर—गौतम ! तीन प्रकार का है-सम्यक्त्ववेदनीय, मिथ्यात्ववेदनीय और सम्यमिथ्यात्ववेदनीय ।
यहाँ यद्यपि दर्शनमोहनीय कर्म तीन प्रकार का कहा गया है तथापि सम्यक्त्ववेदनीय और सम्यमिथ्यात्ववेदनीय प्रकृतियाँ पुण्यरूप परिणत होती हैं, पापकर्म रूप नहीं; अतएव पापकर्म में केवल मिथ्यात्व कर्म की ही गणना की गई है। ___सोलह कषाय इस प्रकार हैं-अनन्तोनुबंधी क्रोध, अनन्तानुबंधी मान, अनन्तानुबंधी माया, अनन्तानुबंधी लोभ; अप्रत्याख्यान क्रोध, अप्रत्याख्यान मान, अप्रत्याख्यान माया अप्रत्याख्यान लोभ, प्रत्याख्यानावरण क्रोध, प्रत्याख्यानावरणमान, प्रत्याख्यानावरण माया,
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧