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________________ ५३८ तत्त्वार्थस्त्रे रादयो मेरुप्रादक्षिण्यमकुर्वन्त एव नित्यगतयो भवन्ति । ध्रुवतारादीनामपि स्वपरिधिषु सञ्चरणशीलत्वात् तत्र-जम्बूदीपे द्वौ सूयौं वर्तेते, लवणसमुद्रेच-चत्वारः सूर्याः सन्ति, धातकोखण्डेद्वादशसूर्याः सञ्चरन्ति, कालोदधौ-द्वाचत्वारिंशत् सूर्याः सन्ति । पुष्करद्वीपार्धे-द्वासप्ततिःसूर्या;सन्ति,इत्येवं रीत्या तावन्मनुष्यलोके द्वात्रिंशदधिकशतसूर्या भवन्ति । चन्द्रा अपि एतावन्त एव मनुष्यक्षेत्रे सन्ति, ग्रहाश्चा-ऽष्टाशीतिसंख्यका भस्मराश्यादयः सन्ति । नक्षत्राणिचा-ऽष्टाविंशतिसंख्यकाःसन्ति, ताराश्च-एञ्चसप्तत्यधिकनवशतोत्तरषट्षष्टिसहस्रकोटिकोटयः एकैकस्य चन्द्रस्य परिग्रहरूपेण सन्ति । तत्र-सूर्याश्चन्द्राः ग्रहानक्षत्राणि ताराश्चेति सर्वज्योति'कास्तिर्यग्लोक एव व्यवस्थिताःसन्ति से खलु सूर्या:--स्वतापच्छेदतः प्रकाशयन्तो मेरोः प्रदक्षिणं कुर्वन्तः सञ्चरन्ति । तिर्यक्तापक्षेत्रञ्च प्रत्येकं सूर्याणामन्तः संकुटं बहिर्विशालं ऊर्ध्वमुख-कलम्बुका पुष्पाकृतिः त्रिषष्टयधिक शतद्वयोंत्तरसप्तचत्वारिंशत् सहस्रयोजनप्रमाणं योजनस्यैकविंशतिः षष्टिभागा इत्यवसेयम् (४७२६३ २. __ अथवा–चन्द्र सूर्य आदि कोई-कोई ज्योतिष्क मेरु की प्रदक्षिणा करते हुए निरन्तर गतिशील हैं और कोई-कोई ध्रुवतारा आदि ज्योतिष्क मेरु की प्रदक्षिणा न करते हुए ही नित्य गतिशील हैं, क्योंकि वे भी अपनी परिधि में संचार करते रहते हैं। जम्बूद्वीप में दो सूर्य हैं, लवण समुद्र में चार सूर्य हैं, धातकीखंड द्वीप में बारह सूर्य हैं और कालोदधि समुद्र में बयालीस सूर्य हैं । अर्धपुष्कर द्वीप में बहत्तर सूर्य हैं । इस प्रकार सब मिल कर मनुष्यलोक में १३२ सूर्य हैं । मनुष्य लोक में चन्द्रमाओं की भी इतनी ही संख्या है । भस्मराशि आदि ग्रह अठासी (८८) हैं । नक्षत्र अट्ठाईस हैं। एक-एक चन्द्रमा के परिवार रूप तारे (६६९७५०००००००००००००००) छयासठ हजार नौ सौं पचहत्तर कोड़ाकोड़ी हैं। सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र और तारे ये सभी ज्योतिष्क तिर्छ लोक में ही रहे हुए हैं। सूर्य अपने ताप से प्रकाशित होते हुए और मेरु को प्रदक्षिणा करते हुए संचार करते हैं । प्रत्येक सूर्य का तापक्षेत्र अन्दर की ओर सिकुड़ा हुआ और बाहर की ओर विशाल कलंबु का नामक पुष्प के संस्थान-आकार का होता है। जम्बूद्वीप में सूर्य का उत्कृष्ट तापक्षेत्र परिमाण सैंतालीस हजार दोसौ त्रेसठ योजन-और एक योजन का इवकीस साठिया भाग (४७२६३-२१)। શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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