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तत्त्वार्थसूत्रे मूलसूत्रम्-जोइसिया मेरुपयाहिणा कालविभागहेउणो निच्चगइया मणुस्सक्खेत्ते बाहिरए अवढिया य-" ॥२७॥
छाया -ज्योतिष्का मेरुप्रदक्षिणाः कालविभागहेतवो नित्यगतयो मनुष्यक्षेत्रे बहिरवस्थिताश्च" ॥ २७ ॥
तत्त्वार्थदीपिका—पूर्व तावत् भवनपत्यादि सर्वार्थसिद्धपर्यन्तानां देवानां क्रमशः कायप्रवीचार-स्पर्शरूपशब्दमनःप्रवीचारा-ऽप्रवीचाराश्च यथायोग्यं प्रतिपादिताः सम्प्रतिज्योतिष्काणां गतिविशेषकालविभाजकत्वादिकं प्ररूपयितुमाह-"जोइसिया मेरुपयाहिणा कालविभाग हेउणो निच्चगइया मणुस्सक्खेत्ते बाहिरए अवटिया य-" इति
ज्योतिष्काः—चन्द्रसूर्यग्रहनक्षत्रतारकाः पञ्च मेरुप्रदक्षिणाः, मेरोः प्रदक्षिणकारकाः कालविभागहेतवः समयावलिकादि कालविशेषपरिच्छेदजनकाः नित्यगतयः सर्वे ज्योतिष्का मेरुप्रदक्षिणेन गत्वा सर्वदा भ्रमन्तिीति नित्यगतयः, क्षणमपि तेषां गतिः केनाऽप्यवरोद्ध न पार्यते, ते खलु-ज्योतिष्काः मनुष्यलोकोपरिस्थितत्वात् मनुष्यक्षेत्रे सदा गतिमन्तो भवन्ति, मानुषोत्तरपर्वतात् बहिर्भागे ज्योतिष्का न भ्रमन्ति । अपितु-अवस्थिताः एव तिष्ठन्ति ॥२७॥
तत्त्वार्थनियुक्ति:-पूर्वसूत्रे-विषयोपभोगादिकं यथायोग्यं चतुर्विधानामपि भवनपत्यादि सर्वार्थसिद्धपर्यन्तानां देवानां प्रतिपादितम् सम्प्रति-ज्योतिष्काणां चन्द्रसूर्यादिदेवानां गतिस
सूत्रार्थ----'जोइसिया मेरूपयाहिणा काल' इत्यादि । सूत्र २७॥
ज्योतिष्क देव मेरू पर्बत की प्रदक्षिणा देते है, दिन रात आदि काल के विभाग के कारण हैं, मनुष्य क्षेत्र में अर्थात् अढ़ाई द्वीप में निरन्तर गमन करते हैं और मनुष्य से बाहर स्थित हैं ॥ २७॥
तत्त्वार्थदीपिका-पहले बतलाया जा चुका है कि भवनवासियों से लेकर सर्वार्थ सिद्ध तक के देव काम से,स्पशे से, रूप से, शब्द से और मन से प्रवीचार करते हैं और कोई-कोई प्रवीचार से रहित भी होते हैं । अब ज्योतिष्क देवों की गति और कालबिभाजकत्व आदि की प्ररूपणा करने के लिए कहते हैं
चन्द्र सूर्य ग्रह, नक्षत्र और तारा, यह पाँच प्रकार के ज्योतिष्क मेरु पर्वत की परिक्रमा करते हैं , यही काल के विभाग के कारण हैं अर्थात् इनकी गती के कारण ही समय, आवलिका आदि काल का भेद होता है, वे नित्य अर्थात् अनवरत गतिशील रहते हैं-क्षण भर के लिए भी उनकी गती को कोई नहीं रोक सकता । किन्तु मनुष्य क्षेत्र से बाहर अर्थात् मानुषोत्तर पर्वत के आगे वे भ्रमण नहीं करते-स्थिर रहते ह ॥२७॥
तत्त्वार्थनियुक्ति--पूर्वसूत्र में भवनपतियों से लेकर सर्वार्थसिद्ध पर्यन्त के देवों के विषय भोग आदि का यथायोग्य प्रतिपादन किया गया है, अब ज्योतिष्क देवों की गति आदि के
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧