________________
दीपिकानियुक्तिश्च अ० ४ सू. १७ भवनवासीनां विशेषतो दशभेदनिरूपणम् ५०१
उत्तर दिग्वासिनामपि-द्वीपकुमार--दिक्कुमारो-दधिकुमार--विद्युत्कुमार-स्तनितकुमारा-ग्निकुमाराणां च षण्णां प्रत्येकं षट्त्रिंशल्लक्षाणि एकत्र–प्रत्येकं षट्सप्ततिरेव दक्षिणदिग्वासिना सुवर्णकुमाराणां खलु अष्टात्रिंशक्षाणि उत्तरदिग्वा सनां पुनः सुवर्णकुमाराणां चतुस्विंशल्लक्षाणि एकत्र द्विसप्ततिश्चेति- । बायुकुमाराणां षट्चत्वारिंशल्लक्षाणि, एकत्र षण्णवतिश्चेति भवनानि सन्तीति बोध्यम् ।
उक्तञ्च प्रज्ञापनायां प्रथमे पदे देवाधिकारे-“भवणवई दसविहा पण्णत्ता, तंजहा असुरकुमारा-नागकुमारा-सुवणकुमारा-विज्जुकुमारा-अग्गीकुमारा-दीवकुमारा-उदहिकुमारा-दिसाकुमारा-वाउकुमारा-थणियकुमारा-इति भवनयतयो दशविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-असुरकु-मारा:-नागकुमारा-सुवर्णकुमारा --- विद्युत्कुमारा--अग्निकुमाराः-दीपकुमाराःउदधिकुमारः-दिक्कुमाराः-वायुकुमाराः-स्तनितकुमाराः इति ॥१७॥
मूलसूत्रम्-वाणमंतरा अट्टविहा, किण्णर-किंपुरिस-महोरग-गंधव्व-जक्खरक्खस-भूय-पिसायभेदा-" ॥१८॥
छाया-वानव्यन्तरा अष्टविधाः,किन्नर-किम्पुरुष महोरग-गन्धर्व-यक्ष-राक्षस-भूत पिशाच भेदात्-" |॥१८॥
तत्त्वार्थदीपिका--पूर्वसूत्रे भवनपतीनां देवानां विशेषतोऽसुरकुमारादि दशभेदाः प्ररूपिताः सम्प्रति-क्रमप्राप्तान् वानव्यन्तरान् देवान् विशेषतोऽष्टभेदान् प्ररूपयितुमाह-"वाणमंतरा रहने वालों द्वीपकुमारों, दिशाकुमारों उदधिकुमारों, विद्युत्कुमारों स्तनित कुमारों और अग्निकुमारों, इन छहों के छत्तीस-छत्तीस लाख हैं। दोनो दिशाओं के मिलकर प्रत्येक के लियत्तर-- छियत्तर लाख भवन हैं।
दक्षिण दिशा के सुवर्णकुमारों के अड़तीस लाख भवन है, उत्तरदिशा के सुवर्णकुमारों के चौतीस लाख हैं । दोनों के मिलकर बहत्तर लाख हैं।
दक्षिण दिशा में निवास करते वाले वायु कुमारों के पचास और उत्तर दिशा के वायु कुमारों के छीयालीस लाख; दोनों के मिल कर छियानवे लाख भवन हैं।
प्रज्ञापना सूत्र के प्रथम पद में देवों के प्रकरण में कहा है
भवनपति देव दस प्रकार के हैं, यथा-(१) असुरकुमार (२) नागकुमार (३) सुपर्ण कुमार (४) विद्युत्कुमार (५) अग्निकुमार (६) द्वीपकुमार (७) उदधिकुमार (८) दिशाकुमार (९) वायु कुमार और (१०) स्तनितकुमार ॥१७।।
सूत्राथे—'वाणमंतरा अट्ठविहा' सूत्र-१८ वानव्यन्तर देव आठ प्रकार के हैं ।
तत्वार्थदीपिका--पूर्व सूत्र में भवनपति देवों के दस भेदों की प्ररूपणा की गई, अब क्रमप्राप्त वानव्यन्तर देवों के आठ विशेष भेदों की प्ररूपणा करने के लिए कहते हैं---
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧