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________________ दीपिकानिर्युक्तिश्च अ० ४ सू० २ पुण्यस्वरूपनिरूपणम् ४३३ ततोऽन्यत्पापम् । तच्च-पञ्चमे पापाध्याये प्ररूपयिष्यते । शुभायुष्कं कर्म त्रिप्रकारकम्,-तिर्यक्सम्बन्धि-मनुष्यसम्बन्धि-देवसम्बन्धिभेदात् । शुभनामकर्म तावत्-सप्तत्रिंशत्प्रकारमवसेयम् । मनुष्यदेवगति-२ पञ्चेन्द्रियजाति-१ औदारिकादिशरीरपञ्चक-५ समचतुरस्नसंस्थान-१ वज्रर्षभनाराचसंहनन-१ औदारिकवैक्रिया-ऽऽहारकशरीरत्रयाङ्गोपाङ्ग-३ प्रशस्त-वर्ण,गन्ध,रस,स्पर्श,४ मनुष्यदेवानुपूर्वी-२ अगुरुलघु-पराधातो--च्छ्वासा-ऽऽतपो-योत–प्रशस्तविहायोगति-त्रस-बादरपर्याप्त प्रत्येक-स्थिर-शुभ-सुभग-सुस्वरा-ऽऽदेय-यशः-कीर्ति-निर्माण-तीर्थकरनाम--१८ भेदात् इति ॥१॥ मूल सूत्रम्-"नवविहे-पुण्णे-" ॥२॥ छाया--"नवविधं पुण्यम्-" ॥२॥ तत्त्वार्थदीपिका- पूर्वसूत्रे-पुण्यस्वरूपमुक्तम्, सम्प्रति-तभेदान् प्रतिपादयितुमाह"नवविहे पुण्णे-" इति ॥२॥ -॥ नवविधम्-नवप्रकारकं तावत्- पुण्यं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा--अन्नपुण्यम् -१ पानपुण्यम्-२ वस्त्रपुण्यम्-३ लयनपुण्यम्-४ शयनपुण्यम्-४ मनःपुण्यम्-६ वचःपुण्यम्-७ कायपुण्यम्-८ नमस्कारपुण्यम्-९ इति-॥ __शुभ आयु कर्म के तीन भेद हैं—तिर्यंचसंबंधी, मनुष्यसंबंधी और देवसंबंधी। शुभ नामकर्म सैंतीस प्रकार का है—(१) मनुष्यगति (२) देवगति (३) पंचेंद्रियजाति (४-८) औदारिक आदि पाँच शरीर (९) समचतुरस्र संस्थान (१०) वज्र-ऋषभनाराच संहनन (११) औदारिक अंगोपांग (१२) वैक्रिय-अंगोपांग (१३) आहारक अंगोपांग (१४) प्रशस्त वर्ण (१५) प्रशस्त गंध (१६) प्रशस्त रस (१७) प्रशस्त स्पर्श (१८) मनुष्यानुपूर्वी (१९) देवानुपूर्वी (२०) अगुरु लघु (२१) पराधात (२२) उच्छ्वास (२३) आतप (२४) उद्योत (२५) प्रशस्त विहायोगति (२६) त्रस (२७) बादर (२८) पर्याप्त (२९) प्रत्येक (३०) स्थिर (३१) शुभ (३२) सुभग (३३) सुस्वर (३४) आदेय (३५) यशः कीर्ति (३६) निर्माण और (३७) तीर्थंकर नाम कर्म ॥१॥ सूत्रार्थ --- 'नवविहे पुण्णे' सूत्र २ पुण्य नौ प्रकार का है ॥२॥ तत्त्वार्थदीपिका--- पूर्व सूत्र में पुण्य का स्वरूप बतलाया गया है। अब उसके भेदों का प्रतिपादन करते हैं पुण्य के नौ भेद हैं । वे इस प्रकार हैं (१) अन्नपुण्य (२) पानपुण्य (३) वस्त्रपुण्य (४) लयनपुण्य (५) शयनपुण्य (६) मनःपुण्य (७) वचनपुण्य (८) कायपुण्य और (९) नमस्कारपुण्य ॥२॥ શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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