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________________ ४२४ तत्त्वार्थसूत्रे टकमवसेयम् । तथाहि किं निमित्ताः पुद्गला बध्यन्ते -: इति प्रथमः प्रश्नः १ आत्मा तावत् तान् पुद्गलान् कर्मभावेन परिणतियोग्यान् बध्नन् किमेकेन दिक्प्रदेशेन बध्नाति -: उताहो सर्वदिक्प्रदेशै बध्नाति ? इति द्वितीयः प्रश्नः -२ स खलु पुद्गलानां प्रदेशबन्धः किं सर्वजीवानां समान एव भवति ? उताहो कुतश्चिन्निमित्तादसमानः- इति तृतीयः प्रश्नः - ३ किं गुणा - केवलाः पुद्गला बध्यन्ते -: इति चतुर्थः प्रश्नः -४ अथ-यत्र च गगनतले व्यवस्थिताः पुद्गला भवन्ति तत्रैव ये जीवप्रदेशा अवगाढाः सन्ति, किं तेषामेव पुद्गलानां तेषु जीवप्रदेशेषु बन्धो भवति ? आहोस्विद् - जीवप्रदेशावगाढाकाशदेशव्यतिरिक्तप्रदेशवर्तिनोऽपि पुद्गला बध्यन्ते इति पञ्चमः प्रश्नः - ५ अथ किं गतिपरिणताः पुद्गला बध्यन्ते-? उताहो-स्थितिपरिणताः पुद्गला बध्यन्ते : इति षष्ठः प्रश्नः ६ अथ ते खलु कर्मभावेन बध्यमानाः पुद्गलाः किमात्मनां सर्वप्रदेशेषु श्लिष्यन्ति - ? किंवा - एकैकप्रदेशे श्लिष्यन्ति-: इति सप्तमः–७ । अथ ते किल कर्मभावपरिणतियोग्याः पुद्गलस्कन्धाः किं संख्येयासंख्येयानन्तप्रदेशा बध्यन्ते -? किं वा -ऽनन्तानन्तप्रदेशा बध्यन्ते - ? इत्यष्टमः प्रश्नः -- ८ एषामष्टानामपि प्रश्नानां क्रमशोऽष्टावुत्तराणि वक्ष्यमाणानि बोध्यानि । तथाहि के स्वरूप को स्पष्ट रूप से समझने के लिए आठ प्रश्नों के उत्तरों को समझ लेना आवश्यक है । वे इस प्रकार हैं (१) उन पुगलों के बन्ध का कारण क्या है ? (२) आत्मा कर्मयोग्य पुद्गलों को जब बाँधता है तो एक दिशा से बाँधता है अथवा सर्व दिशाओं से ? (३) क्या प्रदेशबन्ध सब जीवों को एक समान होता है ? या किसी कारण से उसमें असमानता होती है ? (४) किन गुणों वाले पुद्गलों का बन्ध होता है ? (५) जिन आकाशप्रदेशों में कर्मवर्गणा के पुद्गल अवगाढ हैं, उन्हीं आकाशप्रदेशों में स्थित आत्मा, वहीं का वहीं, उन्हें बद्ध कर लेता है अथवा बाहरी आकाशप्रदेशों में स्थित पुगों को खींच कर ग्रहण करता है ? (६) क्या गतिपरिणत पुद्गल बद्ध होते हैं ? अथवा स्थिति - परिणत - स्थिर पुद्गलों का बन्ध होता है ? (७) बँधने वाले पुद्गल समस्त आत्मप्रदेशों में बँधते हैं या आत्मा के एक-एक प्रदेश में बंधते हैं ! (८) कार्मणवर्गणा के वे पुद्गल संख्यातप्रदेशी या असंख्यातप्रदेशी हों तो बंधते हैं अथवा अनन्तप्रदेशी हों तो ही उनका बन्ध होता है ? શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર : ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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