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दीपिकानियुक्तिश्च अ० ३ सू० १४ ज्ञानावरणादीनां स्थितिबन्धनिरूपणम् ४०३
मूलसूत्रम् – “णाणदंसणावरणिज्ज वेयणिज्जतरायाणं तीसई कोडाकोडीओ ठिई उक्कोसिया, ॥१४॥
छाया-"शान-दर्शना-ऽवरण-वेदनीया-न्तरायाणां त्रिंशत्कोटिकोटयः स्थितिरुकर्षिका, ॥१४॥
तत्त्वार्थदीपिका-पूर्वं ज्ञानावरणाद्यष्टविधकर्मणां मूलप्रकृतिबन्धः प्ररूपितः सम्प्रति-तेषां स्थितिबन्धं प्ररूपयितुमाह-"णाणदंसणा-" इत्यादि । ज्ञानावरणदर्शनावरणवेदनीयाऽन्तरायाणां चतुर्णा कर्मणां त्रिंशत्सागरोपमकोटिकोट्यः उत्कर्षिका उत्कृष्टा स्थितिःप्रज्ञप्ता । एतेषां चतुणा जघन्यिका-जघन्या स्थितिरेन्तमुहूर्तप्रमाणा प्रज्ञप्ता । तथाच-ज्ञानावरण-दर्शनावरणवेदनीयान्तरायकर्मणामुत्कर्षेण त्रिंशत्सागरोपमकोटिकोट्यः स्थितिर्मवतीति विज्ञेयम् ॥१४॥
तत्त्वार्थनियुक्तिः-पूर्व तावद्ज्ञानावरणादिकर्मणां मूलप्रकृतिबन्धःप्रतिपादितः सम्प्रति - तेषां स्थितिबन्धं प्रतिपादयितुं प्रथमं तावद् ज्ञानदर्शनावरणवेदनीयान्तरायणां चतुर्णा कर्मणां स्थितिबन्धं प्रतिपादयति — "णाणदंसणावरणिज्जवेयणिज्जंतरायाणं तीसई कोडिकोडीओ ठिई उक्कोसिया" इति । ज्ञानदर्शनावरणवेदनीयाऽन्तरायाणां चतुएँ कर्मणां त्रिंशत्सागरोपमकोटिकोट्यः उत्कर्षिका उत्कृष्टा स्थितिः प्रज्ञप्ता, बन्धकालादारभ्य यावदशेषं निर्जीर्ण भवति तावान् खलु स्थितिकालः स्थितिपदेनोच्यते ।
तथाचा-ऽऽसां चतसृणां मूलप्रकृतीनां त्रिंशत्सागरोपमकोटिकोटीरूप उत्कृष्टः स्थितिबन्धः सूत्रार्थ-'णाणदंसणावरणिज्ज' इत्यादि सूत्र ॥१४॥
ज्ञानावरण दर्शनावरण वेदनीय और अन्तराय कर्म की उत्कृष्ट स्थिति तीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम की और जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है ॥१४॥
तत्त्वार्थदीपिका--इससे पूर्व प्रकृतिबन्ध का प्ररूपण करने के लिए कहते हैं-ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय और अन्तराय, इन चारकर्मों की उत्कृष्ट स्थिति तीस कोड़ा कोड़ी सागरोपम की है और जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है ॥१४॥
तत्त्वार्थनियुक्ति-पिछले सूत्रों में मूल और उत्तर प्रकृतिबन्ध की प्ररूपणा की गई है। अब स्थितिबन्ध का प्ररूपणा करते हुए पहले ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय और अन्तराय कर्म की स्थिति बतलाते हैं
ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय और अन्तराय कर्म की उत्कृष्ट स्थिति तीस कोड़ा कोड़ी सागरोपम की और जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है। बन्ध के समय से आरंभ करके अब तक वह कर्म पूर्ण रूप से निर्जीर्ण होता है, तब तक का काल स्थितिकाल कहलाता है। स्थिति काल को ही यहाँ स्थिति शब्द से कहा है ।
इस प्रकार पूर्वोक्त चार मूलप्रकृतियों का स्थिति बन्ध उत्कृष्ट तीस कोड़ा कोड़ी सागरो
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧