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तत्वार्थ सूत्रे
वर्तमानादिपरिणतियुक्तं भवति, तथाचाऽयं परिणामो द्रव्यार्थिकनयव्यापारात्-धर्मादिस्वभावो भवति न तु धर्मादिव्यतिरिक्तं ।
एवं क्वचिद् वैस्रसिकः, क्वचित्तु प्रायोगिकः, क्वचित्पुनरुभयथा भवति सद्वस्तुन उत्पाद व्ययौग्यलक्षणात् । एवञ्चा - नेकान्तवादानुसारेण रूपिषु पुद्गलेषु द्रव्येषु प्रधानतया सादिपरिणामस्य सत्त्वेऽपि कथञ्चित् - अनादिपरिणामोऽपि संघटते । एवमरूपिषु धर्मादिद्रव्येषु प्रधानतयाऽनादिपरिणामस्य सत्त्वेऽपि कथञ्चित्सादिपरिणामो भवति, न तु — अरूपिषु, अमूर्तद्रव्यधर्मादिषु इतिकेचिदाहुः
तन्न तेषां मतेऽरूपिद्रव्येषु पर्यायाश्रयव्यवहारविलोपापच्या - उत्पादव्ययादि लक्षणा - सङ्गमात् परिणामाभावः स्यात् । तेषाञ्च धर्मादीनामरूपिद्रव्याणामपरिणामित्वेऽनिर्धार्यमात्रस्वभावत्वं भवेत् स्वत उत्पादव्ययपरिणामरहितत्वात् । तस्मात् सर्वत्रैव मूर्तेषु - अमूर्तेषु च द्रव्येषु केचित् - साद्याः केचिदनाद्याश्च परिणामाः सन्तीत्यभ्युपगन्तव्यम्
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तथाहि — जीवेषु तावदरूपिषु अनादिजीवत्व - भव्यत्वाऽभव्यत्वादिपरिणामवत्स्वपि योगोपयोग - आदिमन्तौ परिणामौ स्तः । तत्र - योगः खलु पुद्गलसम्बन्धादात्मनो वीर्यविशेषः परि
कालद्रव्य भी वृत्त, वर्त्तमान आदि परिणमन से युक्त होता है । इस प्रकार यह परिणाम द्रव्यार्थिकय के व्यापार से धर्म आदि का स्वभाव है, धर्म आदि से भिन्न नहीं है । इसी प्रकार परिणाम कहीं स्वभाविक होता है, कहीं प्रायोगिक होता है और कहीं दोनों प्रकार का होता है । क्योंकि सवस्तु वही है जो उत्पाद, व्यय और धौव्य लक्षण वाली हो । इस प्रकार अनेकान्तवाद में रूपी पुद्गल द्रव्यों में प्रधान रूप से सादि परिणाम होने पर भी कथंचित् अनादि परिणाम भी घटित होता है । इसी प्रकार अरूपी धर्मादि द्रव्यों में प्रधान रूप से अनादि परिणाम होने पर भी कथंचित् सादि परिणाम भी घटता है ।
किसी-किसी ने कहा है कि रूपी पुद्गलद्रव्यों में ही सादि परिणाम होता है, अरूपी धर्म आदि द्रव्यों में नहीं होता; उनका कथन यथार्थ नहीं है । उनके मत के अनुसार अरूपी द्रव्यों में पर्यायाश्रयी व्यवहार के अभाव की आपत्ति होती है और ऐसा होने से उत्पाद-व्यय आदि लक्षण की संगति नहीं बैठती । इस कारण परिणाम के अभाव का ही प्रसंग हो जाता है ।
धर्म आदि अरूपी द्रव्यों को अपरिणामी मान लेने पर उनका स्वरूप अनिर्धारित हो जाएगा, क्योंकि वे स्वतः उत्पाद और व्यय परिणाम से रहित हैं । अतएव मूर्त्त और अमूर्त्त सभी द्रव्यों में कोई परिणाम सादि होते हैं, कोई अनादि होते हैं; ऐसा स्वीकार करना चाहिए । अरूपी जीवों में जैसे जीवत्व भव्यत्व और अभव्यत्व ये अनादि परिणाम हैं, उसी प्रकार योग और उपयोग आदिमान् परिणाम भो हैं ।
पुद्गलद्रव्य के सम्बन्ध से आत्मा के वीर्य का स्फुरण होना योग कहलाता है । वह काय,
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર ઃ ૧