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________________ दीपिकानिर्युक्तिश्च अ. २. सू. २९ द्रव्यलक्षणनिरूपणम् ३२३ मृद्दव्यस्य घटकपाल -- कपालिका - शरावोदञ्चनस्थास कोशादयः जीवद्रव्यस्य च ज्ञानं क्रोधमान-माया— लोभादयः । एवं तीव्रो मन्दः इत्येवमादयः, गुणाश्च - पर्यायाश्चेति गुणपर्यायाः तेषामाश्रयः - आधार - स्तावद्द्रव्यमित्युच्यते । तथाचाऽन्वयिनो गुणा भवन्ति व्यतिरेकिणश्च - पर्याया उच्यन्ते, तदुभयैरुपेतं द्रव्यं भवति । तथाहि जीव ज्ञानादिभिर्गुणैः पुद्गलादिभ्यो द्रव्यान्तरेभ्यो विशिष्यते - पृथक्क्रियते । तस्माद् ज्ञानादयो जीवद्र व्यस्य गुणा उच्यन्ते तदाश्रयश्च जीवो द्रव्यमिति व्यपदिश्यते । एवं- पुद्गलादयश्च - रूपरसगन्धस्पर्शादिभिर्गुणैः परस्परं द्रव्यान्तरेभ्यो विशिष्यन्ते पृथक्रियन्ते अतो रूपादयः पुद्गलादीनां गुणा उच्यन्ते, पुद्गलादयश्च - द्रव्याणि व्यपदिश्यन्ते । तथाच सामान्यापेक्षयाऽन्वयिनो ज्ञानादयो जीवस्य गुणाः पुद्गलादीनाञ्च - रूपादयो गुणा यदि न स्युः तदा - जीवपुद्गलादीनां सर्वेषां द्रव्यत्वेनाऽविशेषात् सङ्करप्रसङ्गः स्यात् । एवम् — तेषाञ्च जीवपुद्गलादीनां विकाराविशेषात्मनाभिद्यमानाः पर्याया भवन्ति, तेभ्यो गुणपर्यायेम्यः कथञ्चिद् अन्यत्वमापद्यमानः समुदायो द्रव्यत्वेन व्यपदिश्यते इति भावः ॥ २९ ॥ तत्त्वार्थनियुक्तिः -- पूर्वं तावद् धर्माधर्माकाशपुद्गलजीवाः षद्रव्याणि सामान्यतया प्रतिपादितानि किन्तु—–सामान्यतोऽभिधानमात्रादेव धर्मादीनां द्रव्याणां विशेषस्वरूपपरिज्ञानं न सम्भवि घट कपाल, कपालिका, शराव (सिकोरा ), उदंचन स्थास, कोश आदि मृत्तिका द्रव्य के पर्याय हैं और ज्ञान, क्रोध मान माया लोभ आदि जीव द्रव्य के पर्याय हैं । इन गुणों और पर्यायों का जो आधार है, वही द्रव्य है । गुण और पर्याय का अन्तर यह है कि गुण अन्वयी और पर्याय व्यतिरेकी होते हैं । जीव अपने ज्ञान आदि गुणों के कारण पुद्गल आदि अन्य द्रव्यों से पृथक् है । इसी कारण ज्ञानादि जीव के गुणकहलाते हैं और उनका आश्रय जीव द्रव्य कहा जाता है । इसी प्रकार पुद्गल आदि द्रव्य अपने-अपने रूप रस गन्ध स्पर्श आदि गुणों के कारण जीवादि अन्य द्रव्यों से पृथक् किये जाते हैं। इस कारण रूप आदि पुद्गल आदि के गुण कहलाते हैं और पुद्गल आदि द्रव्य-कहजाते हैं । यदि जीव में ज्ञानादि विशिष्ट गुण न होते और पुद्गल में रूप आदि विशिष्ट गुण न होते तो जीव और पुद्गल आदि में द्रव्यत्व समान होने से कोई भेद न रहता - सभी द्रव्य एकमेक हो जाते । गुण यद्यपि द्रव्य की भाँती नित्य हैं परन्तु उनका पर्यायों में परिवर्तन होता रहता है । यह अवस्थापरिवर्तन पर्याय कहलाता है । इसप्रकार पर्याय जैसे द्रव्य के होते हैं वैसे ही गुण के भी होते हैं । इस प्रकार गुणों और पर्यायों का समूह, जो उनसे कथं चित् भिन्न है, द्रव्य कहलाता है ॥२९॥ तत्त्वार्थनियुक्ति पहले धर्म अधर्म, आकाश, काल, पुद्गल और जीव, इन छह द्रव्यों का सामान्य रूप से प्रतिपादन किया गया है, किन्तु सामान्य मात्र कथन से ही શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર : ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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