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________________ ३२२ तत्त्वार्थसूत्रे तेषां वन्धो न भवतीति फलितम् । एवमेव द्विभागस्निग्धानां पुद्गलानां द्विभागस्निग्धैः पुद्गलैः सह, त्रिभागस्निग्धानां त्रिभागस्निग्धैः सह बन्धो न भवति । एवं यावदनन्तभागस्निग्धानां पुद्गलानां सदृशानां सदृशैः पुद्गलैर्यावदनन्तपुद्गलैः सदृश बन्धो न भवति । एवं द्विभागरूक्षाणं पुद्गलानां द्विभागरूक्षैः सह त्रिभागरूक्षाणां त्रिभागरूक्षैः पुद्गलैः सह बन्धो न भवति । एवं--यावदनन्तभागरूक्षाणां पुद्गलानां सदृशानां यावदनन्तभागरूक्षैः सदृशैः सह बन्धो न भवति । वैषम्ये तु-सदृशानामपि पुद्गलानां जघन्यवर्जितानां बन्धो भवत्येवेति निर्णयः ॥२८॥ मूलसूत्रम् --- "गुणपज्जायासयो दव्वं-॥२९॥ छाया—गुणपर्यायाश्रयो द्रव्यम् ॥२९॥ तत्त्वार्थदीपिका--पूर्व यद्यपि उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं सत् इति द्रव्यलक्षलं प्रतिपादितम्, तथापि —किञ्चिद्विशेष प्रतिपादयितुं प्रकारान्तरेण तल्लक्षणमाह-गुणपज्जायासयो दव्वं इति । गुणपर्यायाश्रयो द्रव्यम् इति । तत्र-गुण्यते विशिष्यते द्रव्यान्तरात्पृथक्रियते द्रव्यं यैस्ते गुणाः रूपादयो-ज्ञानादयश्च परितः समन्तात् स्वभाव-विभावरूपतया यन्ति-गच्छन्ति ये ते पर्यायाः । यथाएक गुण स्निग्धता या एक गुण रूक्षता होती है, वे परमाणु आदि पुद्गल जधन्यगुण वाले कहे जाते हैं । उनका बन्ध नहीं होता । इसी प्रकार द्विभाग स्निग्ध पुद्गलों का द्विभाग स्निग्ध पुद्गलों के साथ तथा त्रिभाग स्निग्ध पुद्गलों का त्रिभाग स्निग्ध पुद्गलों के साथ बन्ध नहीं होता । इसी प्रकार यावत् अनन्त भाग स्निग्ध सदृश पुद्गलों का अनन्त भाग सदृश पुद्गलों के साथ बन्ध नहीं होता। इसी तरह द्विभाग रूक्ष पुद्गलों का द्विभाग रूक्ष पुद्गलों के साथ, त्रिभागरूक्षों का त्रिभाग रूक्षों के साथ बन्ध नहीं होता । इसी प्रकार अनन्त भाग रूक्ष पुद्गलों का सदृश यावत् अनन्त रूक्ष पुद्गलों के साथ बन्ध नहीं होता। यदि गुण (भाग) की विषमता हो तो जधन्यगुण को छोड़ कर सदृश पुद्गलों का भी बन्ध हो जाता है ॥२८॥ मूलसूत्रार्थ--"गुणपज्जायासयो दव्वं" सूत्र ॥२९॥ जो गुणों और पर्यायों का आश्रय हो वह द्रव्य कहलाताहै ॥२९॥ तत्त्वार्थदीपिका-पहले यद्यपि 'उत्पादव्यय ध्रौव्ययुक्तं सत्' यह द्रव्य का लक्षण कहा जा चुका है तथापि कुछ विशेष प्रतिपादन करने के लिए दूसरे प्रकार से द्रव्य का लक्षण कहते हैं--गुणों और पर्यायों का जो आश्रय है, वह द्रव्य कहलाता है। एक द्रव्य को दूसरे द्रव्यों से पृथक् करने वाले विशेष को 'गुण' कहते हैं । रूप आदि तथा ज्ञान आदि गुण हैं। जो स्वभाव और विभाग रूप से पलटते रहें, उन्हें पर्याय कहा है । जैसे શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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