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________________ तत्त्वार्थसूत्रे णाद्यधिकरूक्षस्य - एक गुणरूक्षेण पुद्गलेन च सह बन्धो न भवति । एकादिगुणाधिकयोः पुनः सदृशयोः स्निग्धपुद्गलयोः रूक्षपुद्गलयोः रूक्षपुद्गलयोर्वा बन्धो न भवति । ३१६ तेषु खलु – एकादिगुणाधिकेषु सदृशस्निग्धेषु सदृशरूक्षेषु वा प्रतिविशिष्टपरिणतिशक्तेरभावात् । तथाच एकगुणस्निग्धस्य परमाणुपुद्गलादेद्विगुणस्निग्धः परमाणुपुद्गलः - एकगुणाधिकः द्विगुणस्निग्धस्य परमाणुपुद्गलस्य त्रिगुण स्निग्धः - परमाणुपुद्गलः - एकगुणाधिकः, त्रिगुणस्निग्धस्य परमाणुपुद्गलस्य चतुर्गुणस्निग्धः परमाणुपुद्गलः - एकगुणाधिको भवति, इत्यादिरीत्या यावदनन्तगुणः पुद्गलः - एकगुणाधिकोऽवगन्तव्यः । एतेषाञ्च सदृशानां परस्परं बन्धो न भवति, उक्तयुक्तेः । एवम् - " जघन्यवर्जः" इतिवचनात् - एकगुणं विहाय द्विगुणस्य परमाणुपुद्गलस्य त्रिगुणेन परमाणुपुद्गलेन सह बन्धो न भवति । एवम् - त्रिगुणस्य चतुर्गुणेन सह बन्धो न भवति इत्यादिरीत्या शेषविकल्पयोजनमपि स्वयं करणीयम् । एवम् — एकगुणरूक्षस्य परमाणुपुद्गलादेर्द्विगुणरूक्षः परमाणुपुद्गलः - एकगुणाधिको भवति, एवं द्विगुणरूक्षस्य परमाणुपुद्गलस्य त्रिगुण रूक्षः परमाणुपुद्गलः एक गुणाधिको भवति, त्रिगु साथ द्विगुण अधिक स्निग्ध पुद्गल का एक गुण स्निग्ध के साथ, एकगुण रूक्ष पुद्गल का द्विगुण अधिक रूक्ष के साथ, द्विगुणअधिक रूक्षका एकगुण रूक्ष पुद्गल के साथ बन्ध नहीं होता । एक आदि गुण अधिक सदृश दो स्निग्ध पुद्गलों अथवा रूक्ष पुद्गलों का बन्ध नहीं होता । उनकादि गुण अधिक पुद्गलों में सदृश स्निग्ध पुद्गलों में तथा सदृश रूक्ष पुद्गलों में विशिष्ट परिणमन की शक्ति का अभाव होता है । एकगुण स्निग्ध परमाणु आदि पुद्गल की अपेक्षा द्विगुण स्निग्ध परमाणु पुद्गल एक कहलाता है, दो गुण स्निग्ध परमाणु पुद्गल की अपेक्षा तीन गुण स्निग्ध परमाणु पुद्गल एकगुणाधिक कहलाता है, तीन गुण स्निग्ध परमाणुपुद्गल की अपेक्षा चतुर्गुण स्निग्ध परमाणुपुद्गल एक गुणाधिक कहलाता है; इसी प्रकार यावत् अनन्तगुण पुद्गल एक दूसरे की अपेक्षा एकगुणाधिक समझ लेना चाहिए । पूर्वोक्त युक्ति के अनुसार इन सदृश पुगलों का परस्पर बंध नहीं होता । इस प्रकार जघन्य वर्ज अर्थात् जघन्य को छोड़कर इस वचन के अनुसार एक गुण को छोड़कर द्विगुण परमाणु पुद्गल का त्रिगुण परमाणु पुद्गल के साथ बन्ध नहीं होता है । इसी प्रकार त्रिगुण का चतुर्गुण के साथ बन्ध नहीं होता, इत्यादि प्रकार से शेष विकल्पों की योजना स्वयं कर लेना चाहिए । इसी प्रकार एक गुण रूक्ष परमाणुपुद्गल आदि की अपेक्षा द्विगुण रूक्ष परमाणुपुद्गल एकगुणाधिक कहलाता है; दो गुण रूक्षता वाले की अपेक्षा तीन गुणरूक्षता वाला एकगुणाधिक कहलाता है, तीन गुण रूक्ष की अपेक्षा चारगुण रूक्ष एक गुणाधिक कहलाता है, શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર : ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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