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________________ दीपिकानियुक्तिश्च अ० २ सू. २८ स्कन्धानां वधत्वनिरूपणम् ३१५ त्वात् । यथा-जधन्यविषयाणां स्निग्धरूक्षाणां परस्परं बन्धो न भवति, एवंगुणसाम्येऽपि सदृशानां बन्धो न भवतीति बोध्यम् । तथाहि-तुल्यगुणस्निग्धस्य पुद्गलस्य तुल्यगुणस्निग्धेन पुद्गलेन सह बन्धो न भवति । एवं-तुल्यगुणरूक्षस्य पुद्गलस्य तुल्यगुणरूक्षेण पुद्गलेन सह बन्धो न भवतीति । तेषां परस्परसमबलगुणमल्लद्वयाऽभिघातवत् , परिणतशक्तेरभावात् । परन्तु-पञ्चगुणरूक्षेण सह बन्धो भवति, स्निग्धगुणवैषम्ये-रूक्षगुणवैषम्ये च सदृशानामपि पुद्गलानां भवति बन्धः ।। एवं द्विगुणस्निग्धस्य चतुर्गुणस्निग्धेन सह बन्धः, त्रिगुणस्निग्धस्य पञ्चगुणस्निग्धेन सह बन्धः, चतुर्गुणस्निग्धस्य षड्गुणस्निग्धेन सह बन्धः यावदनन्तगुणस्निग्धेन सह बन्धोऽवगन्तव्यः । एवं रूक्षगुणवैषम्येऽपि-स्वयमूहनीयम् । अथैवमपि-एकगुणस्निग्धस्य पुद्गलस्य द्विगुणस्निग्धेनाऽपि पुद्गलेन सह बन्धप्रसङ्गः गुणवैषम्यस्य तत्रापि सत्त्वादिति चेन्मैवम् । यधिकादिगुणानामेव सदृशानां पुद्गलानां परस्परबन्धाऽभ्युपगमात् । ___ तथाहि—एकगुणस्निग्धस्य पुद्गलस्य द्विगुणाधिकस्निग्धेन सह, द्विगुणाधिकस्निग्धस्य पुद्गलस्य एकगुणस्निग्धेन सह, एकगुणरूक्षस्यापि पुद्गलस्य द्विगुणाद्यधिकरूक्षेण पुद्गलेन सह, द्विगुहोता । इसी प्रकार एक गुण स्निग्धता वाले का दो गुण रूक्षता वाले पुद्गल के साथ बन्ध नहीं होता, क्योंकि एक गुण जघन्य गुण होता है । जैसे जघन्य गुण वाले स्निग्ध और रूक्ष पुद्गलों का वन्ध नहीं होता, उसी प्रकार गुणों की समानता होने पर सदृश पुद्गलों का बन्ध नहीं होता । ___ वह इसप्रकार है-तुल्यगुण स्निग्ध पुद्गल का तुल्यगुण स्निग्ध पुद्गल के साथ बन्ध नहीं होता । इसीप्रकार तुल्यगुण रूक्षपुद्गलका तुल्यगुण रूक्ष पुद्गल के साथ बन्ध नहीं होता । समान बल और गुण वाले दो मल्लों के आघात के समान उनमें परिणत करने की शक्ति नहीं होती है। किन्तु पंचगुणस्निग्धका पंचगुणरूक्ष पुद्गल के साथ बन्ध होता है । स्निग्धता गुण की विषमता या रूक्षता गुण की विषमता होने पर सदृश पुद्गलों का भी बन्ध होता है । इस प्रकार द्विगुण स्निग्ध का चतुगुर्ण स्निग्ध के साथ बन्ध होता है, त्रिगुण स्निग्ध का पंचगुण स्निग्ध के साथ बन्ध होता है, चतुर्गुण स्निग्ध का षड्गुण स्निग्ध के साथ बन्ध होता है इसी प्रकार अनन्तगुण स्निग्ध के साथ बंध समझ लेना चाहिए । इसी प्रकार रूक्षगुण की विषमता होने पर भी बन्ध होना स्वयं समझ लेना चाहिए । शंका-ऐसा होने पर भी एकगुण स्निग्ध पुद्गल का द्विगुण स्निग्ध पुद्गल के साथ बन्ध होना चाहिए क्योंकि गुण की विषमता वहाँ भी विद्यमान है । समाधान-ऐसा न कहिए । दो गुण अधिक आदि सदृश पुद्गलों का ही परस्पर बन्ध स्वीकार किया गया है । अतएव एकगुण स्निग्ध पुद्गल का दो अधिक गुण वाले स्निग्ध के શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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