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________________ २८८ तत्त्वार्यसूत्रे परिणामत्वात् त एव पुद्गलाः कदाचित् बादरपरिणामं मेघेन्द्रधनुर्विद्युदादिकमनुभूय पश्चादलक्षणीयपरिणाममात्मस्वरूपावस्थानस्वभावमतिसूक्ष्मं गृह्णन्ति. इन्द्रियान्तरग्रहणलक्षणत्वं वा प्राप्नु वन्ति लवणहिङ्वादयः । सूक्ष्मपरिणामाश्चोत्पद्य पुनरप्याकाशे समन्तात् निखिलदिगन्तरावच्छादकजलधरत्वादिना स्थूलेनाकारेण परिणमन्तीति भावः ॥२३॥ मूलसूत्रम्--"सद् दव्वलक्खणं--" ॥२४॥ छाया--"सद् द्रव्यलक्षणम्-" ॥२४॥ तत्त्वार्थदीपिका--पूर्व धर्माधर्माकाशकालपुद्गलजीवानां षण्णामपि द्रव्याणां विशेषलक्षणानि प्रतिपादितानि, सम्प्रति--तेषां सामन्यलक्षणमाह- "सद दव्व लक्खणं-' इति । सदिति द्रव्यसामान्यलक्षणमवसेयम्, यत्-सत्, तद्--द्रव्यलक्षणमिति व्यपदिश्यते । तथाच- सत्त्वं द्रव्यसामान्यलक्षणं बोध्यम् । तथाचोक्तं व्याख्याप्रज्ञप्तौ भगवती सूत्रे---८शतके ९ उद्देशके--सत्पदद्वारसूत्रे"सद् दव्वं वा--" इति. "सव्यं वा--" ॥२४॥ तत्त्वार्थनियुक्तिः--पूर्वसूत्रे धर्मादीनां द्रव्याणां यथायोगं गतिस्थित्यवगाहोपग्रहादीनि विशेषलक्षणान्युक्तानि, सम्प्रति--सर्वद्रव्यव्यापि लक्षणमभिधातुमाह-"सद् दव्व लक्खणं" इति । द्रव्य समाधान- पुद्गलों का परिणमन बड़ा विचित्र होता है । वही पुद्गल कदाचित् मेघ इन्द्रधनुष विद्युत आदि बादर परिणाम को धारण करते हैं और कभी वही ऐसा सूक्ष्म रूप भी धारण कर लेते हैं कि इन्द्रिय के द्वारा ग्राह्य नहीं होते । कभी-कभी उनमें ऐसा परिणमन हो जाता है कि एक इन्द्रिय के बदले किसी दूसरी इन्द्रिय के द्वारा ग्राह्य बन जाते हैं, जैसे नमक, हींग आदि । नमक और हींग पहले चक्षुग्राह्य होते हैं, मगर जल में घुल जाने पर चक्षुग्राह्य नहीं रहते, रसनाग्राह्य ही रह जाते हैं । कोई-कोई सूक्ष्म रूप में उत्पन्न होकर ऐसे जलधर का आकार धारण कर लेते है जो आकाश में सभी दिशाओं में फैल जाता है । इस प्रकार पुद्गलों के परिणमन की विचित्रता के कारण स्थूल का सूक्ष्म और सूक्ष्म का स्थूल हो जाना तनिक भी आश्चर्यजनक या असंगत नहीं है ॥ २३ ॥ मूलसूत्रार्थ-"सद्दव्वलक्खणं'-सूत्र ॥२४॥ द्रव्य का लक्षण सत् होता है ॥२४॥ तत्त्वार्थदीषिका .. पहले धर्म, अधर्म, आकाश, काल, पुद्गल और जीव, इन छदों द्रव्यों के विशेष लक्षणों का प्रतिपादन किया जा चुका है, अब उनका सामान्य लक्षण कहते हैं द्रव्य का लक्षण सत् है अर्थात् जो सत् है वही द्रव्य का लक्षण है इस प्रकार सत्व द्रव्यसामान्य का स्वरूप है व्याख्याप्रज्ञप्ति-(भगवती) सूत्र में कहा भी है-सत् द्रव्य कहलाता है ॥२४॥ तत्त्वार्थनियुक्ति--पहले धर्म आदि द्रव्यों का गति-उपग्रह, स्थिति-उपग्रह, अवगाह-उपग्रह आदि विशेष लक्षण कहे जा चुके हैं, अब समस्त द्रव्यव्यापक लक्षण कहते हैं શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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