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________________ दीपिकानिर्युक्तिश्व अ २ सू. २३ स्कन्धस्य चक्षुषप्रत्यक्ष निरूपणम् २८७ चतुर्गुणत्वं सर्वेषां भवति. स्पर्शवत्त्वात् तथाच परमाणूनां रूक्षता स्नेहविशेषाद् द्रव्यान्तरेण तथाविधो बन्धपरिणामो भवति । येन प्रचयविशेषात् महान् स्थूलो घटादिः सम्पद्यते, स्निग्धमृद्रजः सम्बन्धितृणादिवत् । तस्मात् तन्मात्रत्वमनाहिताऽतिशयत्वं च न सङ्गतं भवति, तथाचोक्तस्वगतभेदाभ्युपगमान्निरतिशयत्वं केषामपि वस्तूनां सर्वथा नोपपद्यते कदापि नाप्यात्यन्तिको भेद एव भवति, अपितु - किञ्चित्सामान्यमपि भवत्येवेति । न वा - ऐन्द्रियकत्वे इन्द्रियजन्यप्रत्यक्षविषयत्वरूपे परिणामएव केवलं कारणं भवति, अपि तु प्रतिविशिष्टानन्त संख्यासंघातापेक्षा स्थूला परिणतिः प्रतीन्द्रियनियतविषयतामासादयति । तस्मात् नेन्द्रियजन्यप्रत्यक्षत्वे केवलं संघात एव कारणं भवति । नापि केवलं परिणाम एव, अपि तु द्वाभ्यां भेदसंघाताभ्यामेककालिकाभ्यां स्कन्धाचाक्षुषा भवन्ति, अत्र चक्षुः शब्देन समस्तेन्द्रियपरिग्रहो बोध्यः । तेन - स्पर्शरसगन्धशब्दा अपि तथाविधपरिणतिशालिन एव स्वोपलब्धिजन कैरिन्द्रियैरुपलभ्यन्ते । ये पुनरतीन्द्रिया व्यणुकादयोऽनन्तपरमाणु पर्यवसानाः स्कन्धाः सूक्ष्मा अचाक्षुषा भवन्ति, ते त्रिविधात् पूर्वोक्तात् कारणात् संघाताद् एकत्वलक्षणात्, भेदात्-पृथक्त्वलक्षणात् - संघातभेदाच्च तदुभयलक्षणाद् उत्पद्यन्ते । अथ कथं तावद्य एव बादरास्त एव पुनः सूक्ष्मा ? इति नाशङ्कनीयम्, पुद्गलानां विचित्र क्योंकि सभी रूप, रस, गंध और स्पर्श गुण वाले होते हैं । इस प्रकार रूक्षता और स्निग्धता गुण के कारण परमाणुओं का किसी अन्य द्रव्य के साथ बन्ध होता है और उस बन्ध विशेष से घट आदि स्थूल की उत्पत्ति होती है। अगर परमाणु परमाणु मात्र ही रहे, उसमें कोई विशेषता उत्पन्न न हो तो स्थूल की उत्पत्ति नहीं हो सकती । इस प्रकार स्वगत भेद को स्वीकार करने से किन्हीं भी वस्तुओं में सर्वथा निरतिशयता (अभेद) का संभव नहीं होता और न उनमें सर्वथा भेद ही है, किन्तु कुछ समानता भी है । इन्द्रियजनित प्रत्यक्ष का विषय होने रूप परिणाम में ही केवल कारण नहीं होता, किन्तु विशिष्ट प्रकार के अनन्त संख्यक परमाणुओं के संघात से उत्पन्न होने वाली स्थूल परिणति अमुक-अमुक इन्द्रियों का विषय बनती है । इस कारण इन्द्रियजन्य प्रत्यक्ष का विषय होने में केवल संघात ही कारण नहीं है और न केवल परिणाम ही कारण है, वरन् भेद और संघात दोनों जब एक ही काल में होते हैं, तबी स्कंध चाक्षुष होते हैं । यहाँ चक्षु' शब्द से सभी इन्द्रियों को ग्रहण कर लेना चाहिए और यह भी समझ लेना चाहिए कि स्पर्श, रस, गंध और शब्द भी पूर्वोक्त परिणति से युक्त होकर ही स्पर्शन, रसना, घ्राण और श्रोत्र इन्द्रिय के द्वारा जाने जाते हैं । जो द्वणुक से लेकर अनन्त परमाणु पर्यन्त सूक्ष्म स्कंध अचाक्षुष हैं, वे पूर्वोक्त तीन प्रकार के कारण से अर्थात् संघात से, भेद से और संघात - भेद (उभय) से उत्पन्न होते हैं । शंका- जो स्कंध बादर है, वे ही सूक्ष्म कैसे कहे जा सकते हैं ? શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર : ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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