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________________ २७२ तत्त्वार्यसूत्रे परमाणोः सूक्ष्मत्वञ्चाऽऽगमतः समधिगम्यमस्मदादिभिः, द्रव्यार्थिकनयेन च तस्य नित्यत्वमवसेयम् पर्यायार्थिकनयेन तु-नीलादिभिराकारैः परमाणोरनित्यत्वमवगन्तव्यम् न ततः परमणुतरं किमपि द्रव्यं वर्तते, अतः परमाणुरित्युच्यते, एवंविधः स परमाणुः पञ्चानामपि तिक्ताम्लमधुरकटुकषायाणां रसानामन्यतमेन रसेन युक्तो भवति, द्वयोश्च सुरभि-दुरभिगन्धयो रेकेन गन्धेन, पञ्चविघस्य-शुक्लकृष्णहरितपीतरक्तवर्णानामन्यतमेन वर्णेन च युक्तो भवति, चतुर्णाञ्च-स्पर्शयुग्मानां मध्येनाविरुद्धेन स्पर्शद्वयेन युक्तश्च बोध्यः । एवं कार्येणाऽस्मदादिप्रत्यक्षदृश्येन बादरपरिणामशालिनाऽनेकविधेन पुद्गलादिस्कन्धात्मकेन स परमाणुः लिङ्गयते- समधिगम्यते इति कार्यलिङ्गश्च द्रष्टव्यः स्कन्धपुद्गलस्तु अवयवीबादरः प्रत्यक्षदृश्यो भवति, परमाणवः अबद्धाः परस्परेणाऽसंयुक्ता भवन्ति, स्कन्धास्तु-बादरपरिणामपरिणता अष्टस्पर्शाः बद्धा एव परमाणुसंघाताः भवन्ति । सूक्ष्मपरिणामशालिनः पुनः स्कन्धाश्चतुःस्पर्शाः परमसंहत्या च व्यवास्थता भवन्तीति भावः तथाच प्रदेशमात्रभाविना स्पर्शादिपर्यायाणामुत्पत्तिसामर्थ्येन परमागमे अण्यन्ते-साध्यन्ते कार्यलिङ्गं दृष्ट्वा सद्रूपतया प्रतिपाद्यन्ते इत्यणवः, परमाश्चते अणवः परमाणवः इति परमाणुपदव्युत्पत्त्या सूक्ष्मत्वात् आत्मादयः आत्ममध्या आत्मान्ताश्च भवन्ति तथाचोक्तम् कारण के होने पर ही कार्य की उत्पत्ति होती है, यह नियम सर्वत्र लागू होता है । उन-उन कार्यों के जनक होने से लाल कमल आदि और गोबर आदि भी कारण ही सिद्ध होते हैं। इसी प्रकार यहाँ भी परमाणुओं के होने पर ही द्वयणुकादि होते हैं और आत्मा के होने पर ही ज्ञान होता है। यह भाव है । कारण के अभाव में या विकलता में कार्य की उत्पत्ति नहीं होती, जैसे विष में मारण शक्ति होने पर भी यदि वह शक्ति मंत्र के द्वारा प्रतिबद्ध हो गई हो तो उसके द्वारा मारण-कार्य नहीं होता । कर्ता रूप निमित्त की अपेक्षा रखने बाले कुम्भकार, दंड, आकाश आदि कारणों का निरूपण भी पूर्वोक्त प्रकार से ही कर लेना चाहिए। हम लोगों को परमाणु की सूक्ष्मता आगम से जान कर द्रव्यार्थिकनय की अपेक्षा से नित्यता समझनी चाहिये । परमाणु से अधिक छोटा अन्य कोई द्रव्य नहीं है इसी कारण वह परमाणु कहलाता है । ऐसा यह परमाणु तिक्त आम्ल, मधुर, कटुक और कषाय रसों में से किसी एक रस से युक्त होता है, सुरभि और दुरभि गन्धों में से एक गन्ध वाला होता है, शुक्ल, कृष्ण, हरित, पीत और रक्त-इन पोंच वर्ण में से एक वर्ण वाला होता है और चार स्पर्शयुगलों में से अविरोधी दो स्पर्शी से युक्त होता है। बादर परिणाम वाले अनेक प्रकार के पुद्गल आदि कार्यों से, जो हमें प्रत्यक्ष दिखाई શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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