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________________ २१४ तत्त्वार्थसूने तत्त्वार्थनियुक्ति:--पूर्वसूत्रे-धर्माधर्मयोरमूर्तत्वात् कृत्स्ने लोकाकाशेऽवगाहः प्रतिपादितः सम्प्रति-तद् विपरीतानां मूर्तिमतामप्रदेशसंख्येयाऽसंख्येयाऽनन्तप्रदेशानां परमाणुप्रभृतिपुद्गलानां लोकाकाशेऽवगाह विशेषप्रतिपत्यर्थमाह-पोग्गलाणं भयणा एगाइपएसेमु-" इति । एकादिषु प्रदेशेषु-एकः प्रदेश आदिर्येषान्ते एकादिप्रदेशाः तेषु पुद्गलानाम् परमाणुप्रभृतिपुद्गलद्रव्याणामवगाहो भजनया भवति, कस्यचित्-पुद्गलस्यैकप्रदेशे, कस्यचित्पुनर्दयोर्बर्हषु वा-ऽऽकाशप्रदेशेषु-अवगाहो भवति ।। ___तद्यथा--एकस्मिन्नाकाशप्रदेशे पुद्गलपरमाणोरवगाहों भवति, द्वयणुकस्यैकस्मिन् आकाशप्रदेशे, द्वयोश्चाकाशप्रदेशयोर्बदस्याऽबद्धस्य चावगाहो भवति, त्र्यणुकस्यैकत्र द्वयोस्त्रिषु चाऽऽकाप्रदेशेषु बद्धस्याऽबद्धस्य चावगाहो भवति, एवम्-संख्येयाऽसंख्येयाऽनन्तप्रदेशानां पुद्गलस्कन्धानां लोकाकाशस्यैकसंख्येयाऽसंख्येयप्रदेशेषु अवस्थानरूपोऽवगाहोऽवगन्तव्यः । अथाऽमूर्तयोर्धर्माऽधर्मयोरेकत्राऽविरोधेनाऽवस्थानसम्भवेऽपि मूर्तिमतां पुद्गलद्रव्याणां कथमेकत्राऽवगाहरूपमवस्थानं सम्भवति-परस्परविरुद्धत्वादिति चेन्मैवम् । अवगाहनस्वभावत्वात्, सूक्ष्मपरिणामाच्च, मूर्तिमतामपि पुदगलानामेकत्राऽवगाहो न स्कन्ध का एक आदि संख्यात या असंख्यात प्रदेशों में अवगाह होता है। यहाँ तक कि अनन्तप्रदेशी स्कन्ध का भी एक दो संख्यात अथवा असंख्यात आकाशप्रदेशों में अवगाह होता है।।१२॥ तत्त्वार्थनियुक्ति--पूर्वसूत्र में अमूर्त धर्म-अधर्म द्रव्यों का सम्पूर्ण लोकाकाश में अवगाह प्रतिपादन किया गया है । अब उनसे विपरीत मूर्त्तिमान् अप्रदेशी, संख्यातप्रदेशी, असंख्यातप्रदेशी और अनन्तप्रदेशी परमाणु आदि पुद्गलों का लोकाकाश में अवगाह निरूपण करने के लिए कहते हैं-- परमाणु आदि पुद्गलद्रव्यों का अवगाह भजना से एक आदि आकाशप्रदेशों में होता है । अर्थात् किसी पुद्गल का एक प्रदेश में, किसी का दो प्रदेशों में और किसी का संख्यात–असंख्यात प्रदेशों में अवगाह होता है । परमाणु का एक आकाश प्रदेश में, बद्ध या अबद्ध द्वयणुक का एक या दो आकाशप्रदेशों में अवगाह होता है। बद्ध या अबद्ध त्र्यणुक का एक, दो या तीन प्रदेशों में अवगाह होता है। इसी प्रकार संख्यात, असंख्यात तथा अनन्त प्रदेश वाले पुद्गलस्कन्धों का लोकाकाश के एक, संख्यात अथवा असंख्यात प्रदेशों में अवगाह समझना चाहिए । शंका-अमूर्त होने के कारण धर्म और अधर्म द्रव्यों का एक ही आकाशप्रदेश में विना विरोध अवस्थान होना तो संभव है, मगर रूपी पुद्गलद्रव्य एक ही स्थान पर किस प्रकार रह सकते हैं ? मूर्त द्रव्य परस्पर प्रतिघाती होते हैं। समाधान-अपने अवगाहन स्वभाव के कारण तथा सूक्ष्म रूप में परिणत होने के कारण मूर्त्तिमान् पुद्गलों का भी एक जगह अवगाह होने में कोई विरोध नहीं है; जैसे ऐक ही શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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