SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 212
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तत्त्वार्यसूत्रे तद्यथा--- अस्य मुनेरियं मुखवस्त्रिका वर्तते इति मुनिमुखवस्त्रिकयो दे सत्येव षष्ठीदृश्यते इतिरोत्या द्रव्यगुणयोर्भेदः सिध्यन्ति अथ द्रव्यस्य द्रव्यान्तरात् पार्थक्येनोपलभ्यमानतयाऽर्थान्तरत्वेऽपि गुणस्य रूपादे व्यापार्थक्येनाऽनुपलब्धेः द्रव्यस्य वा रूपादिगुणेभ्यः पार्थवयेनानुपलभ्य मानतया कथं तयोर्भेदसिद्धि रितिचेत् - उच्यते. यदि द्रव्यगुणयोर्भेदो न स्यात् तदा-भेदे एव षष्ठीविधानेन चन्दनस्य श्वेतं रूपम्, तितो रसः, सुरभिर्गन्धः, इत्येवं रीत्या षष्ठी न स्यात् तयोरभेदे षश्ठयनुपपत्ति. स्यात् तस्मात्तयर्भेदोऽवश्यमभ्युपगन्तव्यः __ अथ सेना-वनादिवदनान्तरेऽपि षष्ठीदृश्यते, यथा-सेनायाः कुञ्जरः काननस्य सहकारः इति, कुञ्जरादिसमूहस्यैव सेनापदार्थत्वात् सहकारादिवृक्षसमुदायस्यैव च काननत्वात् इतिचेत् उच्यते सेनाकाननयोः कुञ्जसहकारतोऽनन्तरत्वाभावः तथाहि-अनियतदिग्देशसम्बन्धिषु हस्तिपुरुष-घोटक-रथेषु बहुत्वसंख्याया एव सेना पदार्थता स्यात्, न तु-केवलं कुञ्जरएव सेनापदार्थः इति.। एवं सहकाराम्रजम्बूजम्बीरदाडिमादिवृक्षसमुदायस्यैव काननपदार्थता न केवलं सहकारस्य काननपदार्थता स्यात् इति द्वयमपि पदार्थान्तरमिति भावः ___'इस मुनि की यह मुखवस्त्रिका है' यहाँ जैसे मुनि और मुखवस्त्रिका का भेद होने पर हो षष्ठी विभक्ति देखी जाती है, इसी प्रकार द्रव्य और गुण में भी भेद है। शंका-जैसे एक द्रव्य दूसरे द्रव्य से भिन्न उपलब्ध होता है, उस प्रकार रूप आदि गुण द्रव्य से पृथक नहीं उपलब्ध होते और न द्रव्य ही रूप आदि गुणों से भिन्न उपलब्ध होता है। समाधान-यदि द्रव्य और गुण में भेद न होता तो 'चन्दन का श्वेत रूप, तिक्त रस, सुरभिगंध, इस प्रकार षष्ठी विभक्ति न होती। षष्ठी विभक्ति भेद होने पर ही होती है, अभेद में नहीं होती। अतएव द्रव्य और गुण में भेद अवश्य मानना चाहिए । कदाचित् कहा जाय कि सेना, वन आदि के समान अन्य अर्थो में भी षष्ठी विभक्ति देखी जाती है, जैसे—सेना का हाथी, कानन का आम । हाथी आदि पदार्थों का समूह ही सेना पद का अर्थ है और आम आदि के वृक्षों का समूह ही वन होता है । इसका उत्तर यह है कि सेना का हाथी और कानन का आम में भेद नहीं है। अनियत दिशाओं और देशों में रहे हुए, हस्ती, पुरुष, घोड़ा और रथों में, जो सम्बन्ध विशेष से विशिष्ट हैं, जिनकी संख्या निश्चित-अनिश्चित है, उन सबकी जो वहुत्व संख्या है, वही सेना पद का अर्थ है । अकेला हस्ती ही ऐसा शब्द का वाच्य नहीं है । इसी प्रकार सहकार, आम, जामुन, जंबरी दाडिम आदि के वृक्षों का समूह ही कानन शब्द का वाच्य है, केवल सहकार ही कानन शब्द का अर्थ नहीं है इस कारण वे दोनों भी भिन्न हैं । શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર : ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy