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________________ दीपिका नियुक्तिश्च अ० १ सू. ४० मूलसूत्रम् - " सेसा ति वेया ॥ ४० ॥ -- छाया - "शेषा स्त्रिवेदाः - " ४० तत्वार्थदीपिका - पूर्वसूत्रे नारकाणां सम्मूर्च्छिमानाञ्च जीवानां केवलं नपुंसकत्ववेद एव भवतीति प्रतिपादितम् । सम्प्रति - तेभ्यो नारकसम्मूच्छिमेभ्यो ऽतिरिक्तानां गर्भव्युत्क्रान्तिकपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकमनुष्याणां त्रिवेदत्वं प्रतिपादयितुमाह - - " सेसा तिवेया" - इति । गर्भजपञ्चेन्द्रियतिरश्चां त्रिवेदत्वम् १६१ शेषाः नारकसम्मूच्छिमभिन्नाः गर्भव्युत्क्रान्तिकाः पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः मनुष्याश्च त्रिवेदाः, त्रयो वेदाः । पुंस्त्वस्त्रीत्वनपुंसकत्वलक्षणा येषां ते त्रिवेदास्तथाविधा भवन्ति । एवञ्च - गर्भव्युत्क्रान्तिकाः पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिजा मनुष्याश्च केचन - पुंस्त्ववेदिनः केचन--स्त्रीत्ववेदिनः केचन पुनर्नपुंसकत्ववेदिनश्च भवन्ति ||४०|| तत्वार्थनिर्युक्तिः -- शेषाः नैरयिक – सम्मूच्छिमभिन्ना गर्भव्युत्क्रान्तिक- मनुष्य – पञ्चेन्द्रि-तिर्यग्योनिकास्त्रिवेदाः स्त्रीवेदवेदिनः पुरुषवेदवेदिनो नपुंसक वेददेदिनश्च भवन्ति । तथाच -- -- जरायुजाण्डजपोतजा स्त्रिविधा भवन्ति । स्त्रियः पुमांसो नपुंसकानि चेति फलि - तम् । उक्तञ्च समवायाङ्गसूत्रे - "गब्भवक्कंतियमणुस्सा पंचिंदियतिरिया य तिवेया" इति । गर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्याः पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाश्च त्रिवेदाः इति ||४०|| मूलसूत्रम् - - " आऊ दुविहे, सोवक्कमे निरुवक्कमे य - " ॥४१॥ छाया--- "आयुद्विविधम् सोपक्रमं निरुपक्रमं च - ॥४१॥ मूलसूत्रार्थ - " सेसा तिवेया" सू० ४० शेष जीव तीनों वेद वाले होते हैं ||४०|| तत्वार्थदीपिका -- पूर्वसूत्र में प्रतिपादन किया गया है कि नारक और संमूच्छिम जीव सिर्फ नपुंसक वेद वाले ही होते हैं। अब उनके अतिरिक्त अर्थात् नारकों और संमूच्छिमों के सिवाय जो गर्भज पंचेन्द्रिय तिर्थंच और मनुष्य हैं, वे तीनों वेदों वाले होते हैं, यह प्रतिपादन करने के लिए कहते हैं- शेष जीव अर्थात् नारकों और संमूच्छिमों से भिन्न गर्भजन्म से उत्पन्न होने वाले पंचेन्द्रि तिच और मनुष्य तीनों वेदों वाले होते हैं । जिन जीवों में पुरुषवेद, स्त्रीवेद और नपुंसकवेद तीनों पाये जाएँ, वे तीनवेद वाले होते हैं । इस प्रकार गर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यचों और मनुष्यों में कोई पुरुषवेदी, कोई स्त्रीवेदी और कोई नपुंसकवेदी होते हैं ॥ ४० ॥ तत्वार्थनिर्युक्ति-- शेष अर्थात् नारकों और सम्मूछिंमों से भिन्न गर्भज मनुष्य और पंचेन्द्रिय तिर्येच त्रिवेदी होते हैं अर्थात् उनमें स्त्रियाँ भी होती हैं, पुरुष भी होते हैं और नपुंसक भी होते हैं । इस कथन का फलितार्थ यह है कि जरायुज, अण्डज और पोतज प्राणी तीनों प्रकार के होते हैं - स्त्री, पुरुष और नपुंसक । समवायांग सूत्र में कहा है गर्भ से उत्पन्न होने वाले मनुष्य और पंचेन्द्रिय तिर्यंच तीनों वेदों वाले होते है ||४० २१ શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર : ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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