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श्रीकल्पसूत्रे ||३८६॥
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किमपि घटपटादि कार्य कारणेन विना कारणाभावे नो सम्पद्यते, अपितु कारणेनैव किमपि कार्य सम्पद्यते अतो जीवानां राजत्वादि विचित्रकार्याणां कारणतया कर्म स्वीकरणीयमेवेति पर्यवसितम् । इत्थं कर्मणः सत्तामुपपाद्य सम्प्रति मूर्त्तमूर्त्तयोः कर्मजीवयो सम्बन्धं युक्तवा साधयति - 'अह च' इत्यादि ।
अथ च यथा मूर्त्तस्य घटस्य अमूर्तेन आकाशेन सह सम्बन्धः, तथा तेन प्रकारेण मूर्तस्य कर्मणः अमूर्तेन जीवेन सह सम्बन्ध बोध्यः । तथा च-मूर्तैः नानाविधैः =अनेकप्रकारैः मद्यैर्जीवस्य उपघातः = वैरुप्यादि दोषजननेन हानिर्भवति । तदुक्तम् —
हैया अमूर्त ? अगर अमूर्त है तो तुम्हारे मतानुसार वह मूर्त कार्यों को उत्पन्न नहीं कर सकता । अगर मूर्त है तो फिर वह कर्म हो है । इसी बात को मन में लेकर कहते हैं- 'नो खलु' इत्यादि ।
घटपट आदि कोई भी कार्य कारण के विना उत्पन्न नहीं हो सकता। कारण से ही कोई कार्य उत्पन्न होता है। अतः जीवों के राजा होने आदि विचित्र कार्यों का कारण कर्म स्वीकार करना चाहिए | इस प्रकार कर्म की सत्ता सिद्ध कर के अब मूर्त कर्म और अमूर्त जीव का संबंध युक्ति से सिद्ध करते हैं - 'ग्रह य' इत्यादि । जैसे मूर्त घट का अमूर्त आकाश के साथ सम्बन्ध होता है, उसी प्रकार मूर्त कर्म का अमूर्त जीव के साथ संबंध समझ लेना चाहिए। अथवा-जैसे नाना प्रकार के मूर्त मधों के द्वारा जीव का उपवात (विरूपता आदि दोषों की उत्पत्ति होने से हानि होती है। कहा भी है
અમૂર્ત હોય તા તમારા મત પ્રમાણે તે મૂર્ત કાર્યને ઉત્પન્ન કરી શકતા નથી. જો મૂત હોય તેા પછી તે કર્માં જ 5. बात भनभां सधने हे छे "नो खलु" इत्यादि
ઘટપટ આદિ કાઈ પણ કાર્ય" કારણવિના ઉત્પન્ન થઇ શકતાં નથી. કારણુથી જ કાઇ કા ઉત્પન્ન થાય છે. તેથી જીવાનુ રાજા થયું આદિ વિચિત્ર કાર્યાનું કારણ ક`ને સ્વીકારવુ જોઇએ. આ પ્રમાણે કર્મની સત્તા સિદ્ધ કરીને वे भूर्तभूर्त कवनो संबंध युतिथी सिद्ध रे छे - " अहय" त्याहि
જેમ મૂર્ત ઘડાના અદ્ભૂત આકાશની સાથે સંબધ હાય છે, એજ પ્રમાણે મૂત કર્મના અમૂત જીવની સાથે સંબંધ સમજી લેવા જોઈએ. અથવા જેમ વિવિધ પ્રકારના મૃત મદ્યોના દ્વારા જીવના ઉપધાત. (વિરૂપતા આદિ દોષાની उत्पत्ति थवाथी हानी) थाय छेउ पशु छे
શ્રી કલ્પ સૂત્ર : ૦૨
श्रीकल्पमञ्जरी टीका
अग्निभूतेः कर्मविषयक
संशयनिवारणम् ।
॥मू० १०७॥
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