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________________ श्री कल्पसूत्रे ॥३२०॥ त्खलु वेarian स्तेन चातुर्वर्ण्याकीर्ण संघ स्थापयिष्यति ५ । यत्खलु पद्मसरो दृष्टं तेन भवनपति व्यन्तरज्योतिषिक वैमानिकेति चतुर्विधान् देवान् आख्यापयिष्यति ६ । ६ । यत्खलु महासागरो गुजाभ्यां तीर्णो दृष्टः तेनानादिकमनवदग्रं चातुरन्तसंसारसागरं तरिष्यति ७ । यत् खलु तेजसा ज्वलन् दिनकरो दृष्टः, तेन अनन्तमनुत्तरं कृत्स्नं प्रतिपूर्णमव्याहतं निरावरणं केवलवरज्ञानदर्शनं समुत्पत्स्यते ८ । यत्खलु हरिवैडूर्यवर्णान निजकेनान्त्रेण मानुषोत्तरः पर्वतः सर्वतः समन्ताद् आवेष्टितपरिवेष्टितो दृष्टः तेन भगवतः कीर्तिवर्णशब्दश्लोकाः सदेवमनुजासुरे लोके गास्यन्ते ९ । यत्खलु मन्दरे पर्वते मन्दरचूलिकाया उपरि सिंहासनवरगतः धर्म इस प्रकार दो तरह के धर्मों को कथन करेंगे। (५) श्वेत रंग की गायों का समूह देखा, उससे भगवान् चातुर्वर्ण्य से युक्त संघ - श्रमण, श्रमणी श्रावक और श्राविकारूप चार तीर्थ की स्थापना करेंगे। (६) पद्मों से युक्त सरोवर देखने से भगवान् भवनपति, व्यन्तर, ज्यौतिषिक और वैमानिक-इन चार प्रकार के देवो को प्ररूपण करेंगे। (७) महासागर को भुजाओं से पार किया देखा, इससे भगवान् अनादि अनन्त चारगति रूप संसार समुद्र को पार करेंगे । (८) तेज से जाज्वल्यमान सूर्य को देखने से भगवान् को अनन्त, अनुत्तर, प्रतिपूर्ण, प्रतिघाती और आवरण रहित श्रेष्ठ केवलज्ञान और केवलदर्शन प्राप्त होंगे। (९) हरि मणि और वैडूर्य मणि की आभा के समान अपनी श्रांत से मानुषोत्तर पर्वत को आवेष्टित और परिवेष्टित देखा, उसके फल स्वरूप भगवान् की कीर्ति, वर्ण, शब्द और श्लोक देवों, मनुष्यों एवं असुरों सहित लोक में गाये जाएँगे । (१०) मेरु पर्वत पर मेरु की चोटी के ऊपर श्रेष्ठ सिंहासन पर अपने आपको बैठा देखा, उसके फलस्वरूप અને ધર્મોનું કથન કરશે. (૫) પાંચમે સ્વપ્ને શ્વેતરંગની ગાયાના ધણને દેખવાથી ભગવાન ચારવ વાળા ધર્માંની સ્થાપના કરશે એટલે તે સાધુ-સાધ્વી શ્રાવક અને શ્રાવિકા રુપી તીની સ્થાપના કરશે. (૬) છઠ્ઠું સ્વપ્ને કમળેાવાળું सरोवर द्वेषवाथी, भगवान, भवनयति, व्यंतर, ज्योतिषि भने वैमानि देवाने उपदेश आपशे. (७) सातभे સ્વપ્ને મહાસાગરને, સ્વભુજાએ વડે પાર કરતા જોવાથી અનાદ્વિ–અનંત–ચતુતિરૂપ સોંસાર સમુદ્રના તેઓ પાર चामशे. (८) आठभे स्वप्ने तेलेभय सूर्यने लेवाथी भगवान, अनंत, अनुत्तर, प्रतिपूर्ण, अप्रतिघाती, भने निरावरण શ્રેષ્ઠ કેવળજ્ઞાન અને કેવળદનને પ્રાપ્ત કરશે. (૯) નવમા સ્વપ્ને હર નામના મણુિ અને લિલમ એટલે વૈઝૂમણીની કાંતિવાળાં પેાતાના આંતરડાંથી ચારેબાજુ વિંટાએલ માનુષાત્તર પહાડને દેખવાથી ભગવાનની કીર્તિ, વણુ શબ્દ અને શ્લોક દવા મનુષ્યા અને અસુરામાં ગવાશે. (૧૦) દશમે સ્વપ્ને મેરુ પર્વતના શિખરે સિ'હાસન શ્રી કલ્પ સૂત્ર : ૦૨ कल्प मञ्जरी टीका दश महास्वम फल वर्णनम् । ।। ०९९ ।। ॥३२०॥
SR No.006382
Book TitleKalpsutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages509
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size37 MB
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