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________________ श्रीकल्पसूत्रे ||५०८|| 武藏藏藏藏 EAGUE क्षीणकेवलज्ञानावरणत्व५-क्षीणचक्षुर्दर्शनावरणत्व ६ - क्षीणाचक्षुर्दर्शनावरणत्व७ - क्षीणावधिदर्शनावरणत्व ८ - क्षीणकेवलदर्शनावरणत्व९- क्षीणनिद्रत्व १०- क्षीणनिद्रानिद्रत्व ११ - क्षीणमचलत्व १२ - क्षीणप्रचलाप्रचलत्व १३ -क्षीगस्त्यानर्द्धित्व १४ - क्षीणसातावेदनीयत्व १५— क्षीणासातावेदनीयत्व १६ - क्षीणदर्शनमोहनीयत्व १७ – क्षीणचरित्रमोहनीयत्व १८ - क्षीणनैरयिकायुष्कत्व १९ - क्षीणतिर्यगायुष्कत्व २० - क्षीणमनुष्या युष्कत्व २१ - क्षीणदेवायुष्कत्व २२ क्षीणोच्चगोत्रत्व २३ - क्षीणनीच गोत्रत्व २४ - क्षीणशुभनामत्व २५ - क्षीणाशुभनामत्व २६- क्षीणदानान्तरायत्व २७ -क्षीणलाभान्तरायत्व २८- क्षीण भोगान्तरायत्व २९ - क्षीणोपभोगान्तरायत्व३० - क्षीण वीर्यान्तरायत्व३१-प्रभृति- नानाविधगुणरत्नराशिः तत्र क्षीणाभिनिबोधिन्द्रियसंयम, १० - जीवसंयम, ११ - प्रेक्षासंयम (वस्त्र पात्र आदि का एक बार प्रतिलेखन करना) १२ - उपेक्षासंयम ( बार - बार प्रतिलेखन करना) १३ - प्रमार्जनासंयम ( उपाश्रय आदि को पूंज कर काम में लाना), १४ - परिष्ठापना संयम (मल, मूत्र, जल आदि किसी भी वस्तु को जीवरहित भूमि में यतना के साथ परठना), १५ - मनःसंयम, १६ - वचनसंयम और १७-कायसंयम । तथा वह बालक अठारह हजार शीलांगरूप गुणों की राशि होगा। इस प्रकार वह अनेक गुणरूपी रत्नों की राशि-रूप होगा । तथा वह क्षीणआभिनिबोधिकज्ञानावरणत्व (आभिनिवोधिकज्ञानावरण का क्षय रूप गुण) से लगाकर क्षीणवर्यान्तरायत्व तक के पूर्वोक्त एकतीस आदि नाना प्रकार के गुणों की राशि होगा। इन एकतीस गुणों में क्षीण आभिनिबोधिकज्ञानावरणत्व ( श्रभिनिबोधिकज्ञानावरण का क्षय ) से लेकर (E) पथेन्द्रियसंयम (१०) अनुवसंयम (११) प्रेक्षासंयम (वस्त्र पात्र माहिनु मेवार प्रतिजन ४२) (१२) उपेक्षा सत्यभ(वार-बार प्रतिसेान २) (१३) प्रभा नासयम (उपाश्रय महिने पूंकने अममां सेवा) (१४) परिण्डायनासत्यभ (મળ, મૂત્ર, જળ આદિ કાઇ પણ વસ્તુને વરહિત ભૂમિમાં યતનાની સાથે પરઢવી) (૧૫) મનઃસંયમ (૧૬) વચનસંયમ (૧૭) કાયસ યમ. તથા તે બાળક અઢાર હજાર શીલાંગ રૂપ ગુણાની રાશિ થશે. આ રીતે તે અનેક ગુણરૂપી રત્નાનેા રાશિ થશે. તે સિવાય તે પૂર્વભવમાં તીથ કરનામગેાત્રકના ઉપાર્જન રૂપ પરમ પુણ્યના પ્રભાવથી તીર્થંકર થશે. તથા તે ક્ષણઅભિનિષેાધિકજ્ઞાનાવરણત્વ (આભિનિએધિકજ્ઞાનાવરણને ક્ષયરૂપ ગુણ)થી લઈને ક્ષીણવીર્યોસુધીના પૂર્વોકત એકત્રીસ ગુણામાં ક્ષીણઅભિનિમેાધિકજ્ઞાનાવરણત્વ (આભિનિમેાધિકજ્ઞાનાવરણના ન્તરાયત્વ શ્રી કલ્પ સૂત્ર : ૦૧ कल्प मञ्जरी टीका रत्नराशिस्वप्नफलम् ||५०८ ||
SR No.006381
Book TitleKalpsutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages596
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size41 MB
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