________________
श्रीकल्प
सूत्रे
॥४९१ ॥
ताभ्यां सम्पन्नः=युक्तः सन्, वैराग्यपवनप्रेरितं स्याद्वादध्वजम् = अनेकान्तवादरूपपताकां समुच्चालयिष्यति=सम्यक् उड्डाययिष्यति ॥सू० ३८॥
९ - पुण्णकलससुमिणफलम्
मूलम् -- पुण्णकलसदंसणेणं अमू विमलसलिलेहिं कलसो वित्र खमा-संति-माहुरिय - ओदारिय-सोरियगंभीरिय - घेरिय - मद्दव - अजवाइगुणेहिं पुष्णे मंगलमयत्तणओ सगललोग-मंगल-जणओ सगललोग हिययकमला- हिट्ठायगो पंचतिंसय-वाणीगुण- पडिपुण्णो लोग हिरामो धवलकित्ति केवलणाण- केवल दंसण-समलंकिओ जगहिययहरणपवणो सयलतित्थियाणं मुद्धोवरि विरायमाणो सयलजणाणमभिलस णिज्जो भविस्सइ ॥ सू० ३९॥
९ - पूर्णकलशस्वप्नफलम्
छाया -- पूर्ण कलशदर्शनेन असौ विमलसलिलैः कलश इव क्षमा शान्ति-माधुर्यौ - दार्य - शौर्य - गाम्भीर्यधैर्य - मार्दवा -ऽऽर्जवादिगुणैः पूर्णः मङ्गलमयत्वात् सकललोकमङ्गलजनकः सकललोक- हृदयकमला-धिष्ठायकः पञ्चत्रिंशको प्रत्यक्षरूप जानने वाले केवलज्ञान से तथा केवलदर्शन से विभूषित होगा । वैराग्यरूपी वायु से प्रेरित अनेकान्तवाद की पताका को फहराएगा ॥ सू० ३८ ॥
९ - पूर्णकलश के स्वप्न का फल
मूल का अर्थ - 'पुष्कलस दंसणेणं' इत्यादि । पूर्ण कलश को देखने से, जैसे कलश निर्मल जल से परिपूर्ण होता है, उसी प्रकार वह बालक क्षमा, शान्ति, माधुर्य, श्रौदार्य, शौर्य, गांभीर्य, धैर्य, मार्दव, आर्जव आदि गुणों से परिपूर्ण होगा। मंगलमय होने के कारण सम्पूर्ण लोक के मंगल का जनक होगा।
તથા પરિણામ પર્યાયથી ભિન્ન અનન્ત પદાર્થોને પ્રત્યક્ષ રૂપથી જાણનાર કેવળજ્ઞાનથી તથા કેવળદશનથી વિભૂષિત થશે. વળી વૈરાગ્યરૂપી વાયુથી પ્રેરિત અનેકાન્તવાદની પતાકાને ફરકાવશે (સૂ૦૩૮)
૯–પૂર્ણ કળશના સ્વપ્રનું ફળ
भूजना अर्थ - "पुण्णकलसदंसणेणं" इत्याहि. पूरा उपाशने लेवाथी, प्रेम उजश निर्माण पाशुथी परिपूर्ण होय छे, तेम ते जाणः क्षमा, शान्ति, माधुर्य, सौहार्य, शौर्य, गांलीय, धैर्य, भाहब, मानव, आहि गुणेोथी
શ્રી કલ્પ સૂત્ર ઃ ૦૧
कल्प
मञ्जरी टीका
पूर्णकलश
स्वप्नफलम्.
॥४९१ ॥