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________________ श्रीकल्प अत्यन्ततुङ्गतया मेरुगिरि विडम्बयन्तम् अयत्नसम्माप्तं दशदिग्विकाशिनं पूर्वपुण्यराशिमिव रत्नराशिं पश्यति ॥सू०२७॥ टीका-'तओ पुण सा बजवेरुलिय' इत्यादि । ततः देवविमानस्वमदर्शनानन्तरं पुन: त्रयोदशे स्वप्ने सा-त्रिशला रत्नराशिं पश्यति, तत्र कीदृशं रत्नराशिम् ? इत्याह-वज-वैडूर्य-लोहिताक्ष-मसारगल्ल-हंसगर्भ-ज्योतीरत्ना-का-ऽञ्जन-जातरूपा-ऽञ्जनपुलक-रिष्टेन्द्रनील-गोमेद-चन्द्रप्रभ-भुजमोचक-रुचक-सौगन्धिक-पुलकस्फटिक-मरकत-ककेतन-सूर्यकान्त - चन्द्रकान्त-प्रवाल-प्रमुखा-सपत्नरत्न-निकुरम्ब-स्फुरत्कर-निकरेण-वज्रादिप्रवालान्ता रत्नविशेषाः, तत्पमुखानि तत्मभृतीनि यानि असपत्नरत्नानि उत्तमरत्नानि तेषां यद् निकुरम्बं= वृन्दं तस्य ये स्फुरन्तः प्रकाशमानाः कराः किरणास्तेषां निकरण समूहेन विपुलातलं पृथ्वीतलम् अलङ्कुर्वन्तं ॥४५९॥ नेवाली, अनायास प्राप्त, दशों दिशाओं में प्रकाश का प्रसार करने वाली, पूर्वोपार्जित पुण्य की राशि के समान रत्नों की राशि देखी ॥सू० २७॥ टीका का अर्थ-'तओ पुण सा वजवेरुलियः' इत्यादि । देव-विमान का स्वम देखने के पश्चात् तेरहवें स्वम में त्रिशला देवी ने रत्नों की राशि (ढेर) देखी। वह रत्नराशि कैसी थी, सो कहते हैं वज्र, वैडूय, लोहिताक्ष, मसारगल्ल, हंसगर्भ, ज्योतिरत्न, अंक, अंजन, जातरूप, अंजनपुलक, रिष्ट, इन्द्रनील, गोमेद, चन्द्रप्रभ, भुजमोचक, रुचक, सौगंधिक, पुलक, स्फटिक, मरकत, कर्केतन, सूर्यकान्त, चन्द्रकान्त, प्रवाल आदि-आदि उत्तम रत्नों के समूह की प्रकाशमान किरणों के समुदाय से भूतल को अलंकृत शिखिस्वम वर्णनम् . EHRAREERE શ્રમે મળેલી અને દશે દિશાઓમાં પ્રકાશને ફેલાવનારી હતી. ત્રિશલા રાણીએ તે રાત્રે સ્વપ્નમાં આવા પ્રકારની પૂર્વભવમાં ઉપાર્જિત પુણ્યની રાશિની ગેડે રન્નરાશિ જોઇ. (સૂ૦૨૭) टान ग'तओ पुण सा वज्जवेरुलिय' त्याहि. देव-विभाननु न नया पछी तेरभां जमा ત્રિશલા દેવીએ રત્નની રાશિ (ઢગલ) જોઈ. તે રત્ન-રાશિ કેવી હતી, તે કહે છે– १००, वैडू, साहिताक्ष, भसार, सरा, ज्योति, म, मन, ३५, अनल, रिट,ईन्द्रनीस, गोमेह, यन्द्रप्रस भुभाय, रुय, सौगापि, , २५४, भ२४त, ४४तन, सूर्य-त, यन्द्रान्त, પ્રવાલ, વગેરે વગેરે ઉત્તમ રત્નના સમૂહના પ્રકાશમાન કિરણોના સમુદાયથી ભૂતલને શેભાવતી તથા આકાશમંડળને ॥४५॥ શ્રી કલ્પ સૂત્ર: ૦૧
SR No.006381
Book TitleKalpsutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages596
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size41 MB
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