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________________ कल्प श्रीकल्प सूत्रे ॥४४७॥ मञ्जरी टाका नुतरंग रंगत्तरंगभंगं पडु-पवणा-हइ-समुच्छलंत-जलतरंग-परंपरा-संघट्टिय-तड-परावत्त-लोललहरी-लसिय-फेनिलपओ-ललिय-अंतरालं विगयजंबालं महाधुणिय-उद्धरतर-तर-संगम-महागत्ता-वत्त-मिलिय-उच्छलिय-परावित्त धावंत-उल्लसिय-पयसं साउ-जल-सरसं सुंदरं खीरसायरं पासइ ॥ सू० २४॥ ११-क्षीरसागरस्वप्नः छाया-ततः पुनः सा शीतकिरण-किरण-गण-विभासि-विमल-जल-संचयं महामकर-निकर-शिशुमार-वार-तिमि-तिमिङ्गिल-तिमिङ्गिलगिल-चपलो-च्छलन-चोक्षुभ्यमाण-राजमाना-समान-कल्लोल-पोप्लूयमानयादः-समुदयं संमिल-नाना-नदी-जलो-ल्लसत्समुदयं सर्वतः समन्तात् समुच्छल-त्तरलतरो-तुङ्ग-तरङ्गा-नुतरङ्ग रङ्गत्तरङ्गभङ्ग पटु-पवना-ऽऽहति-समुच्छल-जल-तरङ्ग-परम्परा-संघहित-तट-परावृत्त-लोललहरी-लसित ११-क्षीरसागर का स्वप्न मूल का अर्थ-'तओ पुण सा सीयकिरण' इत्यादि । तत्पश्चात् त्रिशला देवी ने चन्द्रमा की किरणों के समूह से उज्ज्वल, निर्मल जलसमूह से युक्त, बड़े-बड़े मगरों के समूह के, शिशुमारों (सौस) के समूह के तथा तिमि, तिमिगिल, तिमिगिलगिल नामक मच्छों के तेजी के साथ उछलने से क्षुब्ध होने के कारण उठने वाली असाधारण तरंगों में तैरने वाले जल-जन्तुओं से युक्त, मिलने वाली अनेक नदियों के जल से जिसकी जलराशि में वृद्धि हो रहो है ऐसे, सभी ओर पूरी तरह उत्पन्न होने वाली तरंगपरम्परा से युक्त, धीरे-धीरे उठती हुई तरंगों के भंग से सम्पन्न, प्रबल पवन के आघात से उठी जल तरंगों की परम्परा से संघहित तट से लौट कर आने वाली चंचल लहरों से सुशोभित एवं फेनयुक्त जल से रमणीय मध्यभाग ૧૧ ક્ષીરસાગરનું સ્વપ્ન भूजन। मथ-'तओ पुण सा सीयकिरण' त्याहि. यंदना भाजयी ५ थारे Garqण निर्भ જળના સમૂહવાળે, અનેક મોટા મોટા મગરે, શિશુમાર, તિમિ, તિમિગિલ, તિબિંગિલગિલ નામવાળા મછાના ઉછળવાથી ઘણે ક્ષુબ્ધ થઈ ગયે છે એ; અસાધારણ તરંગે વચ્ચે પણ તરવાવાળા જળ-જંતુઓ યુક્ત; અનેક નદીઓના પ્રવાહ જેમાં સામેલ થઈ જેના પાણીની વૃદ્ધિ કરે છે એવા; જેના મધ્ય ભાગમાં, તરંગેની પરંપરા નિયત પ્રમાણે ઉઠી રહી છે એ; જેના તરંગે, કિનારે અથડાઈ પાછા વળતા પવનના જોરે, ચંચળ લહેરીઓમાં ફેરવાઈ જાય છે એ; જેના પાણીમાં દૂધ જેવા સફેદ અને મીઠા ફીણ થોકબંધ તરે છે એ; કીચડરહિત क्षीरसागर वर्णनम्. ॥४४७॥ ઈ શ્રી કલ્પ સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006381
Book TitleKalpsutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages596
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size41 MB
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