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________________ श्रीकल्प सूत्रे कल्प ॥४२४॥ मञ्जरी टीका टीका-'तो पुण सा' इत्यादि। ततः लक्ष्मीस्वमदर्शनानन्तरम् पुनः पञ्चमस्वप्ने सा-त्रिशला पुष्पमालायुगलं पश्यतीत्यग्रेण सम्बन्धः, कीदृशं पुष्पमालायुगलमित्याह-सरस-नाग-पुन्नाग-प्रिया-पाटलमण्डिल-मल्लिका-नवमल्लिका-यूथिका-चासन्तिका-कर्णिका-कुटज-कोरण्टक-कुन्द-कुब्जक-कुरबक-कमल-बकुल-वन्धूक -चम्पका-ऽशोक-मन्दार-तिलक-कचनार-सहकारमञ्जरी-जाती-मालत्य-मन्द-सुगन्ध-बन्धुरं-तत्र-सरसानि-रससम्पन्नानि-विकसितानि यानि नागादि-मालत्यन्तानि पुष्पाणि तेषाममन्देन-बहुना मुगन्धेन बन्धुरं शोभितम्, तत्र-नागानि नागकेसरपुष्पाणि, पुन्नागाः जातिक्षपुष्पाणि, प्रियङ्गवः प्रियक्षपुष्पाणि, पाटलानि= गुलाबइति भाषापसिद्धपुष्पाणि, मण्डिला=शिरीषपुष्पाणि, मल्लिकाः मल्लीपुष्पाणि, नवमल्लिकाः नवमल्लिकापुष्पाणि यूथिकाः जूही-तिभाषापसिद्धपुष्पाणि, वासन्तिकाः वासन्तीपुष्पाणि, कर्णिकाः अपराजितापुष्पाणि, कुटजाः गिरिमल्लिकापुष्पाणि, कोरण्टकानि कोरण्टकपुष्पाणि, कुन्दानि-कुन्दपुष्पाणि, कुब्जकानि-शतपत्रिकापुष्पाणि, टीका का अर्थ–'तओ पुण सा' इत्यादि । लक्ष्मी का स्वप्न देखने के पश्चात्, पांचवें स्वम में त्रिशला देवीने पुष्पमाला का युगल देखा, अर्थात् दो फूल मालाएँ देखीं। वह पुष्पमालाओं का युगल कैसा था, सो कहते हैं वह मालायुगल रस से परिपूर्ण तथा खिले हुए नाग से लेकर मालती तक के फूलों की उग्र सुगंध से शोभित था। नाग अर्थात नागकेसर के फूल, पुन्नाग अर्थात् पुन्नाग के फूल, प्रियंगु अर्थात् प्रियंगु वृक्ष के फूल, पाटल अर्थात् गुलाब के फूल, मण्डिल अर्थात् शिरीष के फूल, मल्लिका अर्थात् मल्ली के फूल, नवमल्लिका अर्थात् नवमल्लिका के फूल, यूथिका अर्थात् जुही के फूल, वासन्तिका अर्थात् वासन्ती लता के फूल, कर्णिका अर्थात् अपराजिता के फूल, कुटज अर्थात् गिरिमल्लिका के फूल, कोरंटक के फूल, कुन्द अर्थात् aslil अथ-'तओ पुण सा' या. सभानु २१ या पछी पायम २१नमा शिक्षा पास પુષ્પમાળાનું યુગલ જોયું એટલે કે ફૂલની બે માળાએ જોઈ. તે પુષ્પમાળાનું યુગલ કેવું હતું તે કહે છે– તે માળાયુગલ રસથી ભરેલ તથા વિકસિત નાગથી લઈને માલતી સુધીના ફૂલોની ઉગ્ર સુગધ વડે શોભતું હતું. નાગ અથવા નાગકેસરનાં ફૂલે, પુન્નાગ એટલે કે પુન્નાગનાં ફૂલે, પ્રિયંગુ એટલે કે પ્રિયંગુ વૃક્ષના ફૂલ, પાટલ અથવા ગુલાબનાં ફૂલે, મડિલ એટલે કે શિરીષના ફૂલે, મહિલકા એટલે કે મલ્લીનાં ફૂલે, નવમલ્લિકા એટલે કે નવમલ્લિકાનાં ફૂલે, યૂથિકા એટલે કે જુહીનાં ફૂલો, વાસન્તિકા એટલે કે વાસન્તી લતાના ફૂલે, કર્ણિક એટલે કે અપરાજિતાનાં લે, કુટજ એટલે કે ગિરિમલ્લિકાનાં ફૂલે, કરંટક અથવા કરંટકનાં લે, કુન્દ એટલે पुष्पमाला युगलस्वम वर्णनम्. ॥४२४॥ શ્રી કલ્પ સૂત્ર: ૦૧
SR No.006381
Book TitleKalpsutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages596
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size41 MB
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