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श्रीकल्पसूत्रे ॥४०७||
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सुबद्ध- मांसल - पिच्छल - सुविभक्त- मञ्जुला, घनाssवर्त-स्निग्ध-मनोहर - निशित- विशाल - शृङ्गं शान्तं दान्तं समान - शोभमान - विमल - दन्तं सकल-गुण-समन्वितं हिम-शैल-सन्निभं वृषभं पश्यति ॥ १६॥
टीका- 'तओ पुण सा' इत्यादि । ततः स्वप्रदर्शनानन्तरं पुनः = द्वितीयस्वप्ने सा= त्रिशला धवलकमल-दल-कदम्बका-तिग- देहकान्ति-धवलानि = श्वेतानि यानि कमलदलानि = कमलपत्राणि तेषां यत्कदम्बकं = वृन्दम् तत् अतिगच्छति या सा धवलकमलदलकदम्बकातिगा = श्वेतकमलदलपुञ्जादप्यतिधवला, तादृशी देहकान्तिः = शरीरद्युतिर्यस्य तं वृषभं पश्यतीति सम्बन्धः पुनः कीदृशं वृषभमित्याह - रोई' इत्यादि । रोचि-यो-पहारै: = स्वशरीर-समुद्भूत- प्रकाश - समूह - विस्तारणैः सर्वतः सर्वा दिशः समन्तात् परितः विकाशयन्तं = प्रकाशयन्तं पुनःप्रस्फुर-स्कान्ति-मांसल - विशाल - ककुदं - प्रस्फुरन्ती - प्रकाशमाना कान्तिर्यस्य तादृशं मांसल = पुष्टं विशालं महत् च ककुदं = वृषभाङ्गविशेषो यस्य स तथा तम्, तथा - तनुतम - विशद - सुकुमार-लोम - मसृण-धुतिं -तनुसे कोमलकान्ति वाले, निश्चल सटे हुए पुष्ट चिकने भली भाँति विभागों से युक्त तथा मनोहर अंगों वाले, सघन गोल चिकने सुन्दर तीखे और विशाल सींगों वाले, शान्त, दान्त, एक सरीखे शोभायमान निर्मल दांतों से युक्त, समस्त गुणों से सम्पन्न तथा हिमालय पर्वत जैसे वृषभ को देखा ||०१६ ||
टीका का अर्थ- 'तओ पुण सा' इत्यादि। हाथी को देखने के अनन्तर, दूसरे स्वप्न में, त्रिशला देवी ने, वृषभ देखा । वह श्वेत कमल की पांखडियों के समूह को भी मात करने वाली देहकान्ति से सम्पन्न था। वह अपने शरीर से उत्पन्न होने वाले प्रकाश के समूह को सब ओर फैला रहा था और उस से सभी दिशाएँ प्रकाशित हो रही थीं। अपनी दीप्ति को प्रकाशित करता हुआ पुष्ट और विशाल ककुद से युक्त था। उसके शरीर के रोम बहुत बारीक थे, स्वच्छ थे, नरम थे और चिकनी युति वाले थे। भांधवाणी, आरी, निर्माण भने सुकुमार रोभथी लरपूर, मनोहर अगोयांगवाणी, सघन गोण, शिम्शा, सुडर, तीक्ष्ण, अने વિશાળ સિંગડાવાળા, શાન્ત, દાન્ત, એક સરખા શાભાયમાન નિર્મળ દાંતાવાળા, વૃષભને લગતાં સર્વાંગુણસ'પન્ન शेवो, हिमालयनी उपमा माथी शाय तेव। 'वृषल' लेये. (२०१६)
टीना अर्थ - 'तओ पुण सा' इत्याहि हाथी लेया पछी मील स्वप्नमां त्रिशला हेवी वृषल लेये. ते श्वेत भ ળની પાંખડીઓના સમૂહને પણ મહાત કરનારી દેહકા ન્તિવાળા હતા. તે પેાતાનાં શરીરમાંથી ઉત્પન્ન થતાં પ્રકાશના સમૂહને બધી તરફ ફેલાવી રહ્યો હતો અને તેથી બધી દિશાઓ પ્રકાશિત થઈ રહી હતી. પેાતાની કાન્તિને પ્રકાશિત કરતા પુષ્ટ અને વિશાળ ખૂંધવાળા હતા. તેનાં શરીર પરની રૂવારી ઘણીજ બારીક, સ્વચ્છ, નરમ, અને સુંવાળી તથા
શ્રી કલ્પ સૂત્ર : ૦૧
कल्प
मञ्जरी टीका
वृषभस्वमवर्णनम्.
॥४०७॥